बहुविवाह और निकाह हलाला पर सुप्रीम कोर्ट करेगी सुनवाई; इस मामले में आई बड़ी खबर
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Pleas in supreme court challenging polygamy and nikah halala among Muslims: मुस्लिम धर्म में बहुविवाह और हलाला की प्रथा को संवैधानिक मान्यता के खिलाफ दाखिल जनहित याचिका की सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट ने नई सविधान पीठ का गठन करने का फैसला किया है.
नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट मुसलमानों में बहुविवाह और ‘निकाह हलाला’ की प्रथा की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के लिए पांच न्यायाधीशों की एक नई संविधान पीठ का गठन करने पर सहमत हो गया है. सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को चीफ जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़, जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस जे.बी. पर्दीवाला की बेंच ने इस मुद्दे पर एक जनहित याचिका दायर करने वाले वकील अश्विनी उपाध्याय के याचिका पर गौर कर रही थी. इसमें सुप्रीम कोर्ट के बेंच से अनुरोध किया गया था कि मामले में संविधान पीठ को नए सिरे से गठित करने की जरूरत है, क्योंकि पिछली संविधान पीठ के दो न्यायाधीश-न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी और न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता रिटायर हो चुके हैं.
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में पहले से चल रही है सुनवाई
चीफ जस्टिस ने कहा, ‘‘पांच न्यायाधीशों की बेंच के सामने यह बहुत महत्वपूर्ण मामला लंबित है. हम एक बेंच का गठन करेंगे और इस मामले पर गौर करेंगे.’’ इस मामले में पिछले साल दो नवंबर को सुनवाई की गई थी. पिछली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने पिछले 30 अगस्त 2022 को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी), राष्ट्रीय महिला आयोग (एनसीडब्ल्यू) और राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग (एनसीएम) को जनहित याचिकाओं में एक पक्ष बनाया था और उनसे भी जवाब मांगा था. तत्कालीन संविधान पीठ की अध्यक्षता जस्टिस बनर्जी कर रही थीं, और न्यायमूर्ति गुप्ता, न्यायमूर्ति सूर्यकांत, न्यायमूर्ति एमएम सुंदरेश और न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया इसमें शामिल थे.
बहुविवाह और हलाला के खिलाफ कोर्ट में आठ याचिका
हालांकि, जस्टिस बनर्जी और न्यायमूर्ति गुप्ता पिछले साल क्रमशः 23 सितंबर और 16 अक्टूबर को रिटायर हो गए, जिससे बहुविवाह और 'निकाह हलाला’ की प्रथाओं के खिलाफ आठ याचिकाओं पर सुनवाई के लिए संविधान पीठ के पुनर्गठन की जरूरत पड़ी. उपाध्याय ने अपनी जनहित याचिका में बहुविवाह और 'निकाह हलाला’ को असंवैधानिक और गैर-कानूनी घोषित करने का निर्देश देने की अपील की है. सुप्रीम कोर्ट ने जुलाई 2018 में उनकी याचिका पर विचार किया था और इस मामले को संविधान पीठ के पास भेज दिया था, जो पहले से ही ऐसी ही याचिकाओं की सुनवाई कर रही थी.
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