SC के जस्टिस कौल ने सरकार के लिए कही चुभने वाली बात, लेकिन रिटायरमेंट के बाद
सुप्रीम कोर्ट में जज पद से रिटायर हुए जस्टिस संजय किशन कौल ने अखबार को दिए इंटरव्यू में कहा कि न्यायपालिका का काम सरकार और विपक्ष को मज़बूत या कमज़ोर करना नहीं है. न्यायपालिका को संविधान के तहत सरंक्षण मिला है इसलिए न्यायपालिका को बोल्ड होना चाहिए
अभी अभी सुप्रीम कोर्ट से रिटायर हुए जस्टिस कौल ने द हिंदू अखबार को दिए अपने इंटरव्यू में न्यायपालिका के कार्य प्रणाली के बारे में बातचीत की. आर्टिकल 370 और समलैंगिकता पर फैसले देने वाली अहम संवैधानिक पीठ का हिस्सा रहे जस्टिस कौल ने न्यायपालिका को लेकर कई अहम बातें की . इससे पहले एक इंटरव्यू में उन्होंने अपने रिटायरमेंट प्लान के बारे में भी चर्चा की थी और कहा था कि रिटायरमेंट के बाद उन्होंने कश्मीर की वादियों में अपने पुश्तैनी घर में रहने का प्लान बनाया है.
क्या कहा न्यायपालिका के बारे में
जस्टिस संजय किशन कौल ने अपने इस इंटरव्यू में न्यायपालिका को लेकर कहा कि न्यायपालिका को निश्चित तौर पर सरकार के राजनीतिक विपक्षी के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए. सरकार या विपक्ष को मज़बूत और कमज़ोर करने का काम न्यायपालिका का नहीं है. किशन कौल ने इस इंटरव्यू में ये भी कहा कि संविधान के तहत न्यायाधीशों को संरक्षण प्राप्त है और इसलिए उन्हें बोल्ड ही होना चाहिए. इसके बाद सरकार के रुख़ वाले कुछ मामलों को प्राथमिकता देने या फिर सरकार के मामलों में दखल या सुनवाई को लेकर जब किशन कौल से सवाल पूछा गया तो उन्होंने कहा कि किसी भी मामले को लेने या उन्हें कितनी प्राथमिकता से लेना चाहिए ऐसे मामलों में न्यायपलिका को बराबरी से काम करना चाहिए. समाज में ये धारणा नहीं बननी चाहिए कि न्यायपलिका किसी मामले को इसलिए गंभीरता से ले रही है क्योंकि न्यायपालिका सरकार को मज़बूत या विपक्ष को कमजोर करना चाहती है. निश्चित तौर पर सरकार को मजबूत करना या विपक्ष को कमजोर करना न्यायपालिका का काम नहीं है.
कौन थे जस्टिस संजय किशन कौल
सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ के बाद किशन कौल सुप्रीम कोर्ट के सबसे सीनियर जज में से एक थे. अब किशन कौल 25 दिसंबर 2023 को रिटायर हो चुके हैं. जस्टिस किशन कौल ने सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के रूप में छह साल और 10 महीने से अधिक समय तक सेवा दी है. इसके दौरान उन्होंने कई अहम फैसले भी दिए और कई अहम फैसले देने वाली सवैंधानिक पीठ का भी हिस्सा रहे हैं.
श्रीनगर में हुआ था जस्टिस कौल का जन्म
26 दिसंबर 1958 को जम्मू कश्मीर की राजधानी श्रीनगर में जस्टिस किशन कौल का जन्म हुआ था. जन्मे संजय किशन कौल कश्मीरी हिंदू ब्राह्मण दत्तात्रेय कौल परिवार से आते हैं. जस्टिस कौल के परदादा महाराजा सूरज किशन कौल जम्मू और कश्मीर रियासत की रीजेंसी काउंसिल में राजस्व मंत्री के पद पर थे. उनके दादा राजा उपिंदर किशन कौल भी देश की सार्वजनिक सेवा में अपना योगदान दे चुके हैं.
1982 में लॉ की बैचलर डिग्री की,2001 में दिल्ली हाईकोर्ट में बने न्यायाधीश
यूं तो जस्टिस किशन कौल का परिवार श्रीनगर में बसा था लेकिन किशन कौल की पढ़ाई दिल्ली में ही हुई. दिल्ली के सेंट स्टीफंस कॉलेज से उन्होंने इकॉनमिक्स (ऑनर्स) में ग्रैजुएशन किया, जिसके बाद 1982 में दिल्ली यूनिवर्सिटी से लॉ की बैचलर डिग्री ली. बैचलर डिग्री के बाद 1982 में ही वे दिल्ली बार काउंसिल में बतौर एडवोकेट रजिस्टर हो गए. जस्टिस कौल ने एक वकील के रूप में दिल्ली हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में प्रैक्टिस किया. 1987 में वे सुप्रीम कोर्ट में एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड बन गए. इसके बाद दिसंबर 1999 में उन्हें सीनियर एडवोकेट का पद दिया गया. इतना ही नहीं किशन कौल ने दिल्ली हाई कोर्ट और दिल्ली यूनिवर्सिटी के सीनियर काउंसिल भी रहे. इसके बाद मई 2001 को दिल्ली हाईकोर्ट में जस्टिस संजय किशन कौल को एडिशनल जज नियुक्त किया फिर सितंबर 2012 में उन्हें हाईकोर्ट में सीजे के पद पर नियुक्त कर दिया गया.
सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ के बाद सुप्रीम कोर्ट के सबसे सीनियर जज
जून 2013 में किशन कौल को पंजाब हरियाणा हाई कोर्ट का चीफ जस्टिस नियुक्त किया गया. 26 जुलाई 2014 को उन्हें मद्रास हाई कोर्ट का चीफ जस्टिस नियुक्त किया गया, जहां से उन्हें प्रमोशन मिला और 17 फरवरी 2017 को जस्टिस किशन कौल सुप्रीम कोर्ट में जज नियुक्त कर दिए गए. जस्टिस किशन कौल सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ के बाद सुप्रीम कोर्ट के सबसे सीनियर जज थे.
जस्टिस कौल के अहम फैसले
जस्टिस संजय किशन कौल सुप्रीम कोर्ट की उस नौ सदस्यीय संवैधानिक पीठ का हिस्सा थे, जिसने निजता के मौलिक अधिकार के पक्ष में फैसला सुनाया था. दिल्ली हाई कोर्ट के जज में रूप में 2008 में बहुचर्चित फैसला सुनाया था, जिसमें जस्टिस कौल ने एम एफ हुसैन के खिलाफ लगे आरोपों को खारिज कर दिया कि हुसैन ने अपनी पेंटिंग के जरिए भारत माता का अपमान किया था. अभी हाल ही में उन्होंने समलैंगिकता और अनुच्छेद 370 के मामले में भी एक अलग भूमिका निभाई