लखनऊः अक्सर बड़े-बुजुर्ग कहते हैं के बुरे लोगों से न दोस्ती अच्छी है और न रिश्तेदारी... इसका खामियाजा इंसान को कभी न कभी भुगतना पड़ जाता है. अतीक अहमद के साले अखलाक अहमद के साथ ही ऐसा ही हुआ है. उत्तर प्रदेश सरकार ने पुलिस हिरासत में मारे गए गैंगस्टर और पूर्व जनप्रतिनिधि अतीक अहमद के साले अखलाक अहमद को नौकरी से निलंबित कर दिया है. 
मेरठ के एक अस्पताल में सेवारत सरकारी डॉक्टर, अखलाक अहमद पर  पुलिस ने अतीक अहमद के सहयोगी गुड्डू मुस्लिम को शरण देने का इल्जाम लगाया गया है, जो 24 फरवरी को वकील उमेश पाल और उनके दो पुलिस गार्डों की हत्या के मामले में यूपी पुलिस द्वारा वांछित है और उसकी तलाश में पुलिस देश के कई हिस्सों में छापेमारी कर रही है. अखलाक अहमद के खिलाफ एक प्राथमिकी दर्ज की गई थी, जिसमें उस पर गुड्डू मुस्लिम को शरण देने का इल्जाम लगाया गया था. 


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पुलिस ने डॉक्टर अखलाक अहमद के घर से सीसीटीवी फुटेज खंगाला था, जिसमें प्रयागराज हत्याकांड के बाद कथित तौर पर गुड्डू मुस्लिम को उनके घर जाते हुए दिखाया गया है. इस मामले में डॉक्टर अखलाक को उत्तर प्रदेश स्पेशल टास्क फोर्स ने करीब तीन हफ्ते पहले गिरफ्तार किया था. गिरफ्तारी के वक्त वह मेरठ के भावनपुर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में सलाहकार के ओहदे पर अपनी सेवा दे रहे थे.

सरकारी सेवा आचरण के खिलाफ था अखलाक का आचरण 
उप मुख्यमंत्री बृजेश पाठक, जिनके पास स्वास्थ्य और चिकित्सा शिक्षा विभाग  है, ने कहा, "डॉक्टर अखलाक अनैतिक गतिविधियों में लिप्त थे, जो सरकारी सेवा आचरण नियमों के खिलाफ है. स्वास्थ्य या चिकित्सा के किसी भी डॉक्टर या कर्मचारी द्वारा ऐसे व्यवहार को बर्दाश्त नहीं किया जा सकता है." संबंधित आदेश प्रमुख सचिव स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण पार्थ सारथी सेन शर्मा ने जारी किए हैं. उन्होंने महानिदेशक, स्वास्थ्य द्वारा लिखे गए एक पत्र पर कार्रवाई की है, जिसने उन्हें डॉक्टर अखलाक अहमद की गिरफ्तारी के आसपास की घटनाओं से अवगत कराया है. 

सरकार ने अखलाक के बहाने दूसरे डॉक्टरों को भी दी चेतावनी 
डीजी के 12 अप्रैल की चिट्ठी का हवाला देते हुए सरकारी प्रवक्ता ने बताया कि नौचंदी थाना पुलिस ने मेरठ की चश्मेवाली गली निवासी डॉक्टर अखलाक को विस्फोटक पदार्थ कानून के तहत गिरफ्तार किया है. यह कहते हुए कि अख़लाक़ को उसके बाद प्रयागराज की नैनी जेल भेज दिया गया था, डीजी ने उनके निलंबन की सिफारिश की जिसे प्रमुख सचिव द्वारा मंजूर किया गया. इससे पहले अन्य स्तर की जाँच करने और जरूरी इजाजत लेने के लिए कुछ वक्त लिया गया था. आदेश का हवाला देते हुए, उपमुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक ने कहा, "विचाराधीन डॉक्टर ने अपने विभाग को बदनाम करने के अलावा राज्य सरकार की छवि को धूमिल करने का काम किया है." पाठक ने राज्य सेवाओं के अन्य डॉक्टरों को भी मामले से सबक लेने और जनसेवा पर ध्यान देने और किसी भी प्रकार की अवैध गतिविधि से दूर रहने की सलाह दी है. 
 


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