बेंगलुरुः क्या कर्नाटक चुनाव से पहले कांग्रेस के घोषणापत्र में बजरंग दल पर प्रतिबंध लगाने का वादा मुस्लिम वोटों को एकजुट करने के मकसद से किया गया था? घोषणापत्र की मसौदा समिति में शामिल कई कांग्रेसी नेताओं ने इस बात की तस्दीक की है कि प्रस्ताव आखिरी वक्त में डाला गया था ताकि भाजपा इसे एक प्रमुख चुनावी मुद्दा बना सके. कांग्रेस ने कर्नाटक में 224 सदस्यीय विधानसभा के चुनावों के लिए अपने घोषणापत्र में कहा था कि वह जाति और धर्म के आधार पर समुदायों के बीच नफरत फैलाने वाले व्यक्तियों और संगठनों के खिलाफ कठोर और निर्णायक कार्रवाई करने के लिए प्रतिबद्ध है. 


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कांग्रेस ने कहा, “हमारा मानना है कि कानून और संविधान पवित्र है और बजरंग दल, पीएफआई (पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया) या बहुसंख्यक या अल्पसंख्यक समुदायों के बीच दुश्मनी या नफरत को बढ़ावा देने वाले व्यक्तियों और संगठनों द्वारा कानून और संविधान का उल्लंघन नहीं किया जा सकता है. हम ऐसे संगठनों पर प्रतिबंध लगाने सहित कानून के मुताबिक निर्णायक कार्रवाई करेंगे."


झांसे में आ गई भाजपा, नहीं मिला कोई फायदा 
भाजपा ने 2 मई को जारी किए गए अपने घोषणापत्र में कांग्रेस के इस प्रस्ताव को तुरंत लागू कर दिया. उसी दिन, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने विजयनगर के जिला मुख्यालय शहर होसपेट में अपने चुनावी भाषण में, इस वादे को भगवान हनुमान पर प्रतिबंध लगाने के समान करार दिया. उन्होंने राज्य में अपने चुनावी भाषणों की शुरुआत और अंत में ’जय बजरंगबली’ के नारे लगाने की मुहिम शुरू कर दी.  

ऐन मौके पर मेनिफेस्टो में जोड़ी गई बजरंग दल वाली बात 
मेनिफेस्टो ड्राफ्टिंग कमेटी के एक सदस्य के मुताबिक, बजरंग दल पर जानबूझकर लाइन डाली गई थी, जिसका कांग्रेस को चुनावी फायदा मिला. मतदान में मुसलमानों की हिस्सेदारी करीब 13 फीसदी रही है. एक कांग्रेस नेता बताया, "हमने घोषणापत्र के दो सेट तैयार किए थे. एक कांग्रेस के शीर्ष नेताओं को अप्रैल के पहले सप्ताह में ही दिया गया था और दूसरा पहले के एक सप्ताह बाद तैयार किया गया था.” अंत में सभी सुझावों को समाहित करते हुए एक अंतिम प्रति तैयार की गई और उसे 1 मई की देर रात छपाई के लिए भेजा जाने वाला था.  

मुस्लिम वोटों के धु्रवीकरण के लिए अपनाई गई ये रणनीति 
कांग्रेस के एक अन्य पदाधिकारी ने कहा, “घोषणापत्र छपाई के लिए भेजे जाने से ठीक पहले, चुनाव के लिए पार्टी की रणनीति में सक्रिय रूप से शामिल एक प्रमुख कांग्रेस महासचिव ने बजरंग दल पर प्रतिबंध लगाने की लाइन डाली. यह जानबूझकर किया गया था." उन्होंने कहा, “इस नेता ने गणना की होगी कि कर्नाटक चुनाव में भाजपा की आक्रामक हिंदुत्व लहर कांग्रेस के पक्ष में मुस्लिम वोटों को मजबूत करेगी और उनकी रणनीति काम कर गई." 

कांग्रेस नेताओं को पार्टी के अंदर ही झेलनी पड़ी फजीहत 
जैसा कि 'बजरंगबली’ (हनुमान) चुनाव में एक बड़ा चर्चा का विषय बन गया था, कांग्रेस घोषणापत्र समिति के सदस्यों को अपने ही कुछ नेताओं की आलोचना का सामना करना पड़ा, जिन्हें डर था कि यह कदम उल्टा पड़ सकता है. घोषणापत्र समिति के एक सदस्य ने कहा, “मैं घबरा गया था, क्योंकि अगर कुछ भी गलत हुआ होता तो सारा दोष हमारी टीम पर पड़ता." कांग्रेस के एक नेता ने कहा, “उम्मीद के मुताबिक, भाजपा ने कांग्रेस द्वारा थाली में परोसे गए मौके को नहीं गंवाया और जमकर हंगामा किया."

4 प्रतिशत मत से पलट गई बाजी 
कर्नाटक चुनाव में कांग्रेस ने 135 सीटों के साथ शानदार जीत हासिल की, जबकि भाजपा और जद (एस) ने क्रमशः 66 और 19 सीटें हासिल कीं है. 2018 के चुनावों में, कांग्रेस ने 38.04 प्रतिशत का वोट-शेयर हासिल किया था., उसके बाद भाजपा (36.22 प्रतिशत) और जद (एस) (18.36 प्रतिशत). हाल में संपन्न हुए चुनावों में, कांग्रेस का वोट शेयर बढ़कर 42.88 प्रतिशत हो गया; जद (एस) का वोट प्रतिशत गिरकर 13.29 प्रतिशत हो गया और भाजपा का वोट शेयर केवल 0.22 प्रतिशत अंक गिरकर 36 प्रतिशत रह गया. 

“ध्रुवीकरण एक दोधारी तलवार है’’ 
राजनीतिक विश्लेषकों की माने तो, कांग्रेस के पक्ष में मुस्लिम वोटों का जमावड़ा था. एक अन्य राजनीतिक पर्यवेक्षक ने कहा, “मुसलमानों ने ठोस रूप से कांग्रेस को वोट दिया. अल्पसंख्यक समुदाय के 80 प्रतिशत या उससे ज्यादा लोगों ने कांग्रेस को वोट दिया." एक अन्य राजनीतिक पर्यवेक्षक ने कहा कि जद (एस) से मुस्लिम वोटों का कांग्रेस में महत्वपूर्ण बदलाव हुआ, यह देखते हुए कि जद (एस) की सीट का हिस्सा 2018 में 37 से घटकर इस बार केवल 19 हो गया, और वोट शेयर पांच से ज्यादा गिर गया. कांग्रेस के एक नेता ने कहा, “ध्रुवीकरण एक दोधारी तलवार है. जबकि भाजपा के मतदाता अपनी पार्टी के साथ बने रहे, जो वोट कांग्रेस और जद (एस) के बीच बिखरे हुए थे, वे हमारे पक्ष में 'ध्रुवीकृत’ हो गए." 


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