36 साल सज़ा काटने के बाद रिहा हुआ 104 साल का शख्स; बाहर आकर नहीं लग रहा उसका मन
यह मामला मगरबी बंगाल के मालदा जिले का है, जहाँ 36 साल जेल में रहने के बाद रिहा हुए 104 साल के शख्स ने कहा है कि वो जेल से निकलने के बाद वहां के लोगों को बहुत मिस कर रहा है, लेकिन वो अपने अधूरे सपने और शौक को भी अब पूरा करना चाहता है. पढ़े पूरी रिपोर्ट..
कोलकाता: मनोविज्ञान मानता है कि जो आदमी जिस हाल में अपनी ज़िन्दगी जीता है, वो उसी का आदि हो जाता है, और उसे वही ज़िन्दगी अच्छी लगने लगती है. ऐसा ही एक कैदी के साथ हुआ जब वो 36 साल की सजा काटकर जेल से बाहर आया तो उसे बाहर की आजादी से अच्छा जेल ही लग रहा है. वो जेल को बहोत ज्यादा मिस कर रहा है.
मगरबी बंगाल के मालदा में 36 साल जेल में रहने के बाद रिहा हुए 104 साल के शख्स ने कहा कि वह अब अपने परिवार के सदस्यों के साथ अपना बचा हुआ वक़्त बिताएंगे और बागवानी करेंगे, लेकिन इसके साथ ही उन्होंने कहा कि वो जेल को बहुत ज्यादा मिस कर रहे हैं. उनका बाहर आने के बाद मन नहीं लग रहा है अभी.
इस बात के लिए हुई थी सजा
गौरतलब है कि रसिकत मंडल नाम के इस आदमी को ज़मीन के झगड़े के एक मामले में अपने भाई की हत्या के इलज़ाम में 36 साल पहले 1988 में कैद की सजा सुनाई गई थी. हालांकि, बीच में उन्हें लगभग एक साल के लिए जमानत पर रिहा भी किया गया था, लेकिन जमानत की मियाद ख़त्म होने के बाद वे फिर से जेल भेज दिया गया और सत्र और हाई कोर्ट ने पिछले मौकों पर उनकी रिहाई की याचिका खारिज कर दी थी. मालदा जिले के मानिकचक के निवासी मंडल को मंगलवार को ही मालदा जेल से रिहा किया गया है. जेल के गेट से बाहर निकलते हुए मंडल ने कहा कि अब वह पूरा वक़्त बागवानी/पौधों की देखभाल करने और परिवार के सदस्यों के साथ बिताने में लगाएंगे. जब उनसे पूछा गया कि उनकी उम्र कितनी है, तो मंडल ने 108 साल बताया, लेकिन उनके साथ आए उनके बेटे ने सुधार करते हुए बताया कि उनकी उम्र 104 साल है. जेल के अफसरों ने भी बताया कि रिकॉर्ड के मुताबिक उनकी उम्र 104 साल है.
अब पूरा करना चाहता है अपने शौक
अपनी उम्र के हिसाब से काफी चुस्त-दुरुस्त दिखने वाले बुजुर्ग मंडल ने कहा, "मुझे याद नहीं है कि मैंने कितने साल जेल में गुज़ारे हैं. ऐसा लगता था कि यह सजा कभी खत्म ही नहीं होगी. मुझे यह भी याद नहीं है कि मुझे कब यहां लाया गया था." हालांकि, उन्होंने कहा, "अब मैं बाहर आ गया हूं और अपने जुनून और शौक के साथ न्याय कर सकता हूं. अपने आंगन के छोटे से बगीचे में पौधों की देखभाल करना चाहता हूँ. जेल में मुझे अपने परिवार और नाती-नातिनों की याद आती थी. अब मैं उनके साथ रहना चाहता हूं." हालांकि, मंडल ने ये भी कहा कि वो जेल को और वहां अपने साथियों को बहुत मिस कर रहे हैं. मंडल के बेटे ने बताया कि उनके पिता को सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद रिहा किया गया है. बेटे ने कहा, "कुछ सालों के बाद, हर कैदी को जेल से रिहा करने का अधिकार होता है, बशर्ते उसने कारावास के दौरान कोई अनुचित काम न किया हो. मुझे खुशी है कि सुप्रीम कोर्ट ने आखिरकार उसकी रिहाई का रास्ता साफ कर दिया." जेल के अधिकारियों ने बताया कि यह राज्य की जेलों में बंद सौ साल से ज़यादा उम्र के कैदियों के बहुत कम मामलों में से एक है.