What is Ramazan First Ashra: रमजान का मुबारक महीना आ गया है. इन दिनों रमजान का पहला अशरा चल रहा है. रमजान पूरे एक महीने का होता है. रजमान को तीन हिस्सों में बांटा गया है. पहला हिस्सा रमजान की 1 से 10 तारीख तक, दूसरा हिस्सा 11 से 20 तारीख तक और तीसरा हिस्सा 21 से 30 तारीख तक. इन हिस्सों को अशरा कहा जाता है. अशरा अरबी लफ्ज है. इसका मतलब दस होता है.


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नाजिल होती है अल्लाह की रहमत
पहला अशरा यानी 1 से 10 दिन तक खुदा की रहमत वाला माना जाता है. इस दौरान मुसलमानों पर अल्लाह की रहमत नाजिल होती है. पैगंबर मोहम्मद की एक हदीस है जिसका मफहूम है रमजान का पहला अशरा रहमत वाला है, दूसरा अशरा अपने गुनाहों की माफी मांगने का है जबकि तीसरा अशरा जहन्नम की आग से अल्लाह की पनाह चाहने वालों का है. 


मोमिन मांगते हैं दुआ
कई आलिम बताते हैं कि रमजान के पहले अशरे में ज्यादा से ज्यादा इबादत करनी चाहिए. ताकि बंदों पर अल्लाह की रहमत नाजिल है. 1 से 10 तारीख तक तमाम मुसलमान रोजा रखते हैं और अल्लाह से अपनी रहमत बरसाने की दुआ करते हैं. इन दिनों अल्लाह भी अपने बंदों की सुनता है और वह उन पर अपनी रहमत नाजिल कर उन्हें बख्श देता है. इसी तरह से दूसरे अशरे में बंदों को इबादत करके रो-रो कर अल्लाह ताला से अपने गुनाहों की माफी मांगनी चाहिए. रमजान का तीसरा शरा जहन्नम की आग से अल्लाह की पनाह चाहने का है, इसमें भी बंदे अल्लाह से जहन्नम की आग से खुद को महफूज रखने की दूआ मांगते हैं.


बंदे और अल्लाह के बीच होता है करार
हैदराबाद की मस्जिद कूए बैग हुसैनी के खतीब मुजम्मिल अहमत सिद्दीकी बताते हैं कि रोजा एक इबादत है. यह ऐसी इबादत है जो अल्लाह और उसके बंदे के दरमियान होती है. अगर कोई मोमिन नमाज पढ़ता है तो अल्लाह देख रहा होता है, जकात देता है तो कोई उसे देख रहा होता है यहां तक जब कोई हज पर जाता हो कोई उसे देख रहा होता है लेकिन रोजा ऐसी इबादत जिसे कोई नहीं देखता. वह सिर्फ अल्लाह जानता है कि बंदे ने उसके लिए रोजा रखा है.