Islamic Knowledge: इस्लाम में हर शख्स पर जकात फर्ज है. जकात का मतलब है कि अपनी कमाई में से ढाई फीसद हिस्सा निकालना और गरीबों को दान करना है. इस्लाम में कहा गया है कि अगर हर मुसलमान वक्त पर जकात अदा करता है तो उसके आस-पास से गरीबी मिट जाएगी. इस्लाम में कहा गया है कि जकात का पैसा अपने गरीब रिश्तेदारों और पड़ोसियों को दिया जा सकता है. जकात निकालने का एक और मकसद यह है कि इससे समाज में आर्थिक संतुलन बना रहेगा.


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जकात के बारे में अहम बातें


जकात के बारे में हदीस में जिक्र है कि यह आपकी कमाई की गंदगी है. अगर आप जकात निकालते हैं तो इससे आपका माल साफ होता है.
जकात निकालने का मतलब है कि आप अल्लाह की राह में पैसा खर्च कर रहे हैं. इससे अल्लाह खुश होता है.
जकात के बारे में कहा गया है कि नमाज और जकात फर्ज है. जो शख्स नमाज पढ़ेगा लेकिन जकात नहीं देगा. उसकी नमाजें कुबूल नहीं होंगी.
एक हदीस में जिक्र है कि जो शख्स जकात नहीं देगा वह मुस्लिम नहीं है. कयामत में उसके अमल का कुछ फायदा नहीं होगा.
जकात अदा करना मतलब अल्लाह के हक से बरी होना है.


किन लोगों पर फर्ज है जकात


जकात उस शख्स पर फर्ज है जिसके पास 7.5 तोला सोना या 52.5 तोला चांदी हो. या फिर इन दोनों को मिला 52.5 तोला चांदी की कीमत के बराबर रकम हो. पूरा साल गुज़र गया हो और इतना रकम उसके पास अपनी ज़रूरतें पूरी करने के बाद भी बचा रह गया हो, तो उस धन या रकम पर ज़कात निकलना फ़र्ज़ हो जाता है. इस लिहाज से अगर देखें तो मौजूदा वक्त में अगर किसी शख्स के पास 37648 रुपये बैलेंस हैं, तो उस पर जकात फर्ज है. यानी उस शख्स को अपने जमा पैसों में से 2.5 फीसद देना होगा. अगर आपके पास 1 लाख रुपये है तो आपको 2500 रुपये जकात के तौर पर देने चाहिए.


फसल पर जकात


एक जगह इरशाद है कि जो जमीनें बारिश के पानी बहते चश्मे या फिर नदी से सैराब होती हैं, या नदी के करीब होने की वजह से उनको पानी नहीं देना पड़ता है, उन