नई दिल्लीः वैदेही और राजन पिछले पिछले सात सालों से नोएडा में लिव-इन-रिलेशनशिप में रहते हैं. दोनों कामकाजी थे, लेकिन पहली लॉकडाउन के बाद वैदेही की नौकरी छूट गई. इस बीच वैदेही ने एक बच्चे को जन्म दिया, लेकिन अब वैदेही और राजन के रिश्ते ठीक नहीं है. राजन उससे अलग होकर बेंगलुरु शिफ्ट होना चाहता है. इस बात पर दोनों के बीच लड़ाई भी होती है. वैदेही बड़े धर्म संकट में है कि क्या वह कानूनी तौर पर राजन से भरण-पोषण की मांग कर सकती है, जबकि उसने उससे विधिवित तौर पर षादी नहीं की है.

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लिव-इन-रिलेशन के नाम पर महिलाओं के अधिकार में कटौती नहीं 
यह समस्या अकेली वैदेही की नहीं है. महानगरों में लिव-इन-रिलेशन कल्चर डिवेलप होने के बाद हजारों कामकाजी युवा इस रिश्ते  में रह रहे हैं. लेकिन एक वक्त आने के बाद उनके रिश्तों में भी खटास और मनमुटाव पैदा हो जाते हैं. कई बार इनके रिष्ते इतने खराब हो जाते हैं कि साथ में रहना मुश्किल हो जाता है. लेकिन जानकारी के अभाव और कानूनी पचड़ों से बचने के लिए अक्सर महिला लिव-इन-पार्टनर कानूनी मदद लेने से वंचित रह जाती है, जबकि कानून लिव-इन-रिलेशन के नाम पर महिलाओं के अधिकार में कोई कटौती नहीं करता है बल्कि उन्हें वह सारे अधिकार देता है, जिसकी एक महिला हकदार होती हैं. कानून लिव-इन-रिलेशन को मान्यता देता है.  


महिला पार्टनर गुजारा-भत्ता पाने की हकदार हैं 
फैमिली मामलों की वकील सुमित्रा गुप्ता कहती हैं, ’’लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाली महिला अपने पार्टनर के खिलाफ घरेलू हिंसा कानून के तहत गुजारे भत्ते के लिए अदालत का दरवाजा खटखटा सकती है. महिला को सीआरपीसी की धारा-125 के तहत गुजारा भत्ता दिया जा सकता है. चनमुनिया बनाम विरेंद्र कुमार मामले में उच्चतम न्यायालय इस तरह का फैसला सुना चुका है. सुप्रीम कोर्ट ने लिव-इन के एक मामले में अपना फैसला देते हुए कहा था कि घरेलू हिंसा में न सिर्फ शारीरिक, मानसिक बल्कि आर्थिक तौर पर प्रताड़ित करने के मामले में लिव-इन में रह चुकी महिला अपने पार्टनर के खिलाफ कानूनी उपचार का सहारा ले सकती है. इस कानून के तहत वह गुजारा भत्ते की हकदार है. यहां तक कि लिव-इन-रिलेषन में पैदा होने वाले संतान भी अपने जैविक पिता से वह सारे हक हासिल कर सकते हैं, जो वैध षादी से पैदा हुए संतानों को प्राप्त है. 


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