चीन के दूसरे प्रान्तों में भी मस्जिदों का बदला जा रहा डिजाइन; सामूहिक नमाज़ पर पाबंदी
इंटरनेशनल आर्गेनाईजेशन ह्यूमन राइट्स वॉच ने अपनी एक नई रिपोर्ट जारी की है जिसमें उन्होंने बयाता की चीन की सरकार चीन में मौजूद मस्जिदों को बंद कर रही है, तोड़ रही है या उनके उपयोग बदल रही है.
ह्यूमन राइट्स के क्षेत्र में काम करने वाले एक इंटरनेशनल आर्गेनाईजेशन ने बुधवार को अपनी एक नयी रिपोर्ट जारी करते हुए कहा की शिंजियांग के अलावा भी चीन बाहरी मस्जिदों को भी बंद करने की तैयारी कर रहा है. अपनी नयी रिपोर्ट में ह्यूमन राइट्स वॉच ने विस्तार से चीन में मस्जिदों को बंद किए जाने के सन्दर्भ में जानकारी दी है जिसमे उन्होंने बताया है कि चीनी अधिकारियों ने उत्तरी निंशिआ और गांसू प्रांत में मौजूद मस्जिदों को बंद किया है. आपको बता दें की इन इलाकों में ‘हुई मुसलमानों’की बहुलता है. रिपोर्ट के मुताबिक, वहां के स्थानीय अधिकारी मस्जिदों का आर्किटेक्चर बदल कर उन्हें ‘चीन’ के आर्किटेक्चर की तरह बदल रहे हैं. चीन की कम्युनिस्ट पार्टी आने वाले चुनाव और अपने शासन को मजबूत करने और चीन में धर्म पर अपना नियंत्रण मजबूत करने के लिए यह दमनकारी अभियान चला रही है.
कितने मुसलमानों के समूह हैं चीन में मौजूद?
साल 2018 में चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की केंद्रीय समिति ने एक दस्तावेज़ जारी किया था, जिसमें मस्जिदों के नियंत्रण और समेकन का उल्लेख किया गया था. इस दस्तावेज़ में सरकारों से कहा गया था कि ‘ज्यादा से ज्यादा मस्जिदों को तोड़ें और इसके निर्माण को हतोत्साहित करें. ऐसे ढांचों की कुल संख्या को कम करने के प्रयास करें.’ उस दस्तावेज़ के मुताबिक़, मस्जिदों का निर्माण, लेआउट और मस्जिदों को मिलने वाले फंड पर सख़्त निगरानी की जानी चाहिए. हलाँकि यह कार्य तिब्बत और शिनजियांग में शुरू हुआ था मगर अब यह दूसरे इलाक़ों में भी फैल रहा है. कहा जाता है की चीन में मुसलमानों के दो मुख्य नस्लीय समूह मौजूद हैं एक समूह 'हुई' उन मुसलमानों के वंशज हैं जो आठवीं सदी में टैंग शासन के दौरान चीन पहुँचे थे, और दूसरा समूह 'वीगरों' का है जो अधिकतर शिनजियांग में ही रहते हैं. स्वतंत्र थिंक टैंक ऑस्ट्रेलियन स्ट्रैटिजिक पॉलिसी इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2017 के बाद से शिनजियांग की दो तिहाई मस्जिदों को या तो नष्ट कर दिया गया है या उन्हें नुक़सान पहुँचाया गया है.
क्या मकसद है इसके पीछे?
ह्यूमन राइट्स वॉच के मुताबिक, चीनी अधिकारियों ने शिंजियांग के बाहर के क्षेत्रों में मौजूद मस्जिदों को या तो बंद कर दिया, तोड़ दिया गया है या उनका रूप परिवर्तित कर दिया है. हालाँकि चीन के विदेश मंत्रालय ने इस रिपोर्ट के संबंध में किए ‘फैक्स’ के जरिए पूछे गए प्रश्नों का कोई जवाब नही दिया है. ह्यूमन राइट्स वॉच के लिए चीन की कार्यवाहक निदेशक माया वांग ने कहा, ‘‘चीन की सरकार मस्जिदों का सुदृढ़ीकरण नहीं कर रही जैसा कि वह दावा करती है, बल्कि धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन करते हुए उन्हें बंद कर रही है. वांग का कहेना ये भी है की ‘‘ चीनी सरकार का मस्जिदों को बंद करना, नष्ट करना और उनका पुनर्निर्माण करना चीन में इस्लाम को खत्म करने के व्यवस्थित प्रयासों का हिस्सा है.’’ ह्यूमन राइट्स वॉच के द्वारा ऑनलाइन पोस्ट किए गए वीडियो और चित्रों से पता चलता है कि 2019 से 2021 के बीच निंशिआ के लियाओकियाओ और चुआनकोऊ गांवों में अधिकारियों ने सभी सात मस्जिदों के गुंबदों और मीनारों को तोड़ दिया है और उनमें से तीन की मुख्य इमारतों को भी नष्ट कर दिया है. सूत्रों के अनुसार चीनी सरकार ‘‘धार्मिक स्थलों की संख्या को सख्ती से नियंत्रित करना चाहती है और उसने मस्जिदों से चीनी वास्तुकला शैली को अपनाने का आह्वान किया है.
क्यूँ है इस्लामिक देश चुप?
ऑस्ट्रेलियन यूनिवर्सिटी के चीन पॉलिसी विशेषज्ञ माइकल क्लार्क ने बताया है कि मुस्लिम देशों की चीन के प्रति ख़ामोशी की मुख्य कारण चीन की आर्थिक शक्ति और उनकी पलटवार स्ट्रैटेजी का डर है. क्लार्क का कहना है की "म्यांमार के ख़िलाफ़ मुस्लिम देश इसलिए बोल लेते हैं, क्योंकि वह एक कमज़ोर देश है और उस पर सियासी दबाव बनाना बेहद आसान है. म्यांमार जैसे देशों की तुलना में चीन की अर्थव्यवस्था 180 गुना ज़्यादा बड़ी है इतना ही नही मध्य-पू्र्व और उत्तरी अफ़्रीका में चीन ने साल 2005 से अब तक 144 अरब डॉलर का इन्वेस्टमेंट किया है और इस दौरान मलेशिया और इंडोनेशिया में चीन ने 121.6 अरब डॉलर का इन्किवेस्याटमेंट भी किया है और साथ हे साथ सऊदी अरब और इराक़ की सरकारी तेल कंपनियों में भी भारी इन्वेस्टमेंट किया हुआ है और यहाँ तक की , चीन ने अपनी महत्वाकांक्षी योजना बेल्ट और रोड के तहत एशिया, मध्य-पूर्व, और अफ़्रीका में भी भारी इन्कावेस्टमेंट का वादा किया है.
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