Dawoodi Bohra community on Waqf Board: वक्फ बोर्ड से जुड़े दो संशोधन बिल लोकसभा में पेश किए गए. बिल पेश किए जाने के बाद कहा गया कि इस विधेयक के तहत सभी समुदायों का प्रतिनिधित्व होगा. वक्फ बोर्ड में दाऊदी बोहरा समुदाय के प्रतिनिधित्व पर भी चर्चा हुई, लेकिन दाऊदी बोहरा समुदाय के लोग वक्फ बोर्ड में प्रतिनिधित्व नहीं चाहते हैं. आज यानी 5 नवंबर को दाऊदी बोहरा समुदाय के प्रतिनिधियों ने वक्फ संशोधन विधेयक पर विचार कर रही संसद की संयुक्त समिति से गुजारिश की है कि उनके समुदाय को किसी भी वक्फ बोर्ड के दायरे से बाहर रखा जाए.


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इन सभी प्रतिनिधियों कहना था कि वक्फ संशोधन विधेयक उनके विशेष दर्जे का जिक्र नहीं करता. इस समुदाय के प्रतिनिधियों की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे भाजपा सांसद जगदम्बिका पाल की अध्यक्षता वाली समिति के समक्ष पेश हुए. समुदाय द्वारा दिए गए एक लिखित आवेदन में कहा गया कि यह एक ‘‘छोटा और मजबूती से जुड़ा हुआ’’ संप्रदाय है. 


सूत्रों के मुताबिक, उन्होंने कहा, ‘‘इसके मामलों को उस तरह के कानून की जरूरी नहीं है, जिसे दूसरे समुदायों के संबंध में आवश्यक या यहां तक ​​​​कि वांछनीय माना जा सकता है.’’ उनका कहना था कि यह जरूरी है कि समुदाय के सदस्यों को उनकी मान्यताओं और आवश्यक धार्मिक प्रथाओं के मुताबिक ऐसी संपत्तियों की स्थापना, रखरखाव, प्रबंधन और प्रशासन करने की इजाजत दी जाए.


दाऊदी बोहरा समुदाय ने क्या दी दलील
उन्होंने यह भी कहा कि वक्फ बोर्ड की शक्तियां इस समुदाय के बुनियादी मत को कमजोर करती हैं. दाऊदी बोहरा समुदाय के प्रतिनिधियों ने सुप्रीम कोर्ट के कई उन फैसलों का हवाला दिया कि जिनमें उनकी ‘‘विशिष्ट संरचना’’ की मान्यता को रेखांकित किया गया है. साल्वे ने दाऊदी बोहरा की विशिष्ट विशेषताओं के बारे में विस्तार से तर्क दिया. उन्होंने विशेष रूप से इस समुदाय के नेता ‘अल-दाई अल-मुतलक’ को समुदाय से जुड़े मामलों में शक्तियों का जिक्र किया और कहा कि किसी भी वक्फ बोर्ड को इस समुदाय की संपत्तियों और मामलों में दखल की इजाजत नहीं दी जा सकती.