Telangana Chunav: इसलिए हैट्रिक लगाने से चूके KCR, नाम बदलना भी पड़ा भारी
Telangana Assembly Election: तेलंगाना में विधानसभा चुनावों की वोट काउंटिंग हो रही है. कई सीटों पर कांग्रेस जीत रही है जबकि केसीआर की पार्टी पीछे है. ऐसे में हम आपको बता रहे हैं कि केसीआर क्यों हारे?
Telangana Assembly Election: साल 2013 में तेलंगाना आंध्रा प्रदेश से अलग हुआ. तब से तेलंगाना में 2 बार विधानसभा चुनाव हो चुके हैं. दोनों बार यहां तेलंगाना राष्ट्र समिति (TRS) जो अब भारत राष्ट्र समिति (BRS) के नाम से जानी जाती है, जीती थी. 119 विधानसभा सीटों वाले तेलंगाना का साल 2023 में तीसरा विधानसभा चुनाव है. लेकिन इस बार ऐसा क्या हुआ कि यहां BRS पीछे चल रही है. आइए जानते हैं मुख्यमंत्री केसीआर की शिकस्त की वजहें.
1. सत्ता विरोधी लहर
पिछले दो कार्यकालों से मुख्यमंत्री केसीआर सत्ता में हैं. लेकिन साल 2023 में केसीआर को सत्ता विरोधी लहर का सामना करना पड़ा है. राज्य के तकरीबन 30 से 40 विधायकों के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर थी. केसीआर ये जानते थे. इसके बावजूद उन्होंने उन विधायकों को टिकट दिया. ये केसीआर के उल्टा पड़ गया.
2. नाम बदलना पड़ा भारी
भारत राष्ट्र समित (BRS) का नाम पहले तेलंगाना राष्ट्र समिति (TRS) था. हाल ही में केसीआर ने पार्टी का नाम बदला. यह फैसला भी केसीआर के लिए गलत साबित हुआ. केसीआर ने यह फैसला इसलिए लिया कि वह राष्ट्रीय राजनीति में आना चाहते थे. बताया जाता है कि नाम बदलने से तेलंगाना के लोग नाराज थे क्योंकि उनकी भावना तेलंगाना से जुड़ी थी. इसलिए नाम बदलना केसीआर के लिए गलत साबित हुआ.
3. दो सीटों पर लड़े केसीआर
पार्टी के मुखिया केसीआर ने दो विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ने का फैसला किया. कांग्रेस ने इस पर उनकी आलोचना की और इसे खूब भुनाया. कांग्रेस का कहना था कि केसीआर अपनी पुरनी सीट से हार रहे हैं. इसलिए वह दूसरी से लड़ रहे हैं. ऐसे में इसे केसीआर की असुरक्षा की भावना के तौर पर पेश किया गया.
4. केसीआर की तबियत खराब
चुनाव की तारीखों के ऐलान के बाद कांग्रेस हरकत में आई. जबकि केसीआर ने देर से प्रचार शुरू किया. इसके अलावा केसीआर की तबियत खराब हो गई. वह प्रचार में कम ही नजर आए. उनकी कमी को दूसरे नेता पूरी नहीं कर सके. इससे कांग्रेस को फायदा मिला.
5. कांग्रेस का हमला
कांग्रेस ने प्रचार के दौरान कहा कि बीआरएस और भाजपा मिली हुई है. इस पर केसीआर ने कड़ी प्रतिक्रिया नहीं दिखाई. इसके खामियाजा पार्टी को भुगतना पड़ा. भाजपा पर भी बीआरएस ने नरमी बरती. इधर कांग्रेस ने अल्पसंख्यकों को साध लिया. इससे बीआरएस को नुकसान हुआ और कांग्रेस को बहुमत मिला.