International Day of the Girl Child: इस्लाम में औरतों का बड़ा मकाम है. मुसलमानों की सबसे पवित्र किताब कुरान में औरतों का कई बार जिक्र किया गया है. इस्लाम में औरतों को मर्दों के बराबर हक दिए गए हैं. कुरान की सूरा निसा में इंसानों के हक और खानदानी निजाम के बारे में बताया गया है. इस सूरा की शुरूआत में ही बताया गया है कि तमाम इंसान एक नस्ल से हैं एक दूसरे का खून और गोश्त हैं. 


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

मर्द औरत बराबर हैं
परिवार को चलाने के लिए इस्लाम ने मर्द और औरतों को अलग-अलग हक दिए और उन्हें इस्लामी माशरे के लिए जरूरी करार दिया. इंसानों के जिंदा रहने की बुनियाद इसी पर है कि दोनों के दरमियान ऐसा ताल्लुक बना रहे कि वह इंसानी जिंदगी को आगे बढ़ाएं. इसलिए इस्लाम में बताया गया है कि हक के लिहाज से इस्लाम में मर्द और औरत बराबर हैं. कुरान में आता है कि "औरतों के लिए भी मारूफ तरीके पर वही हुकूक हैं जैसे मर्दों के हुकूक उन पर हैं." (कुरान- सूरा, बकर: 228)


अच्छे आमाल से होगी गिनती
इस्लाम ने मर्द और औरतों को अलग-अलग हक देकर इबादत की तरफ मोड़ दिया. बताया गया कि दोनों की निजात का रास्ता अल्लाह की बंदगी है. इस्लाम ने इंसान को अल्लाह की बंदगी के रास्ते पर लाकर अच्छे रास्ते पर ला दिया. कुरान में है कि "जो कोई अच्छे काम करे मर्द हो या औरत और वह ईमान रखता हो, सो वह लोग जन्नत में जाएंगे और उनका हक तिल भर भी जाया न होगा." (कुरान- सूरा, निसा: 124)


इस्लाम में औरतों को इज्जत
इस्लाम में औरतों को बराबर इज्जत का हकदार बताया गया है. अल्लाह खुद कुरान में कहता है कि "लोगों! हमने तुम्हें एक मर्द एक औरत से पैदा किया और फिर तुम्हारी कौमें और बिरादरियां बना दीं ताकि तुम एक दूसरे को पहचानो. दरहकीकत अल्लाह के नजदीक तुममें सब से ज्यादा इज्जत वाला वह है जो तुम्हारे अंदर सबसे ज्यादा परहेजगार होगा. यकीनन अल्लाह सब कुछ जानने वाला और बाखबर है." (कुरान-सूरा. अल्हिजरात: 13)