महिला आरक्षण विधेयकः विपक्ष का ऐतराज दरकिनार; कानून को राष्ट्रपति की मिली मंजूरी
Women Reservation Bill becomes law: विपक्षी दल यह मांग कर रहे थे कि महिला आरक्षण कानून के अंदर ओबीसी और अल्पसंख्यक कोटा लागू किया जाए ताकि इस वर्ग की महिलाएं भी अनिवार्य तौर पर देश की विधायी प्रकिया का हिस्सा बन सके, नहीं तो वह इस मामले में पिछड़ जाएंगी.
नई दिल्लीः पिछले हफ्ते संसद में पास किया गया महिला आरक्षण विधेयक राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से सहमति मिलने के बाद कानून बन गया है. 'नारी शक्ति वंदन अधिनियम’, में लोकसभा के साथ-साथ राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण देने का प्रावधान है. इसे राज्यसभा द्वारा सर्वसम्मति से पास किया गया था, जो नए संसद भवन में पास होने वाला पहला कानून बन गया है.
20 सितंबर को, विधेयक को मतविभाजन के बाद पास कर दिया गया था, जिसमें 454 सदस्यों ने कानून के पक्ष में और दो ने इसके विरोध में मतदान किया था. विपक्षी सदस्यों द्वारा पेश किए गए संशोधनों को अस्वीकार कर दिया गया था. विपक्ष इस कानून में कोटा लागू करने की मांग कर रहा था. विपक्षी का कहना था कि अगर इस कानून में कोटा नहीं लागू किया जाता है, यानी ओबीसी और अल्पसंख्यक समुदाय की महिलाओं को आरक्षण नहीं दिया गया तो, उस वर्ग की महिलाओं का संसद और विधानमंडल में प्रतिनिधित्व नहीं होगा और इससे सिर्फ उच्च वर्ग और जाति की महिलाओं को फायदा होगा. वहीं, कुछ विपक्षी नेताओं ने विधेयक का स्वागत किया है.
भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) की एमएलसी के कविता ने संसद में कोटा विधेयक के पास होने को महिलाओं की मजबूत और अधिक महत्वपूर्ण भागीदारी सुनिश्चित करने की दिशा में एक बड़ा कदम बताया है. हालाँकि, उन्होंने कहा, “इसमें कुछ चूक हैं जो किसी का भी ध्यान खींचती हैं. ओबीसी महिलाओं के लिए उप-कोटा का प्रावधान न करना दुखद है. उन्हें विधेयक में एक उप-कोटा जोड़ना चाहिए था, क्योंकि यह समान प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करता नहीं तो देश की विधायी प्रक्रिया में पिछड़े वर्ग की महिलाएं पिछड़ जाएंगी.”
गौरतलब है कि राज्यसभा ने इससे पहले 2010 में कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार के दौरान महिला आरक्षण विधेयक को पास किया था, लेकिन इसे लोकसभा में नहीं लाया गया और बाद में संसद के निचले सदन में यह रद्द हो गया था.
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