मशहूर शायर और नग्मानिगार जां निसार अख्तर का आज यौमे पैदाइश है. जां निसार अख्तर ऐसे शायर थे जिन्होंने हमेशा याद की जाने वाली गज़ले और फिल्मी गाने लिखें हैं. यही वजह है कि उनकी गज़लों और गीत को आज भी लोग अपने ज़हन और दिल में ताज़ा रखते हैं. उन्होंने अपनी शायरी में महबूब से बातों के अलावा अपनी ज़िंदगी की कुछ आप-बती को बयान किया है. तो आइए आज उनके यौमे पैदाइश के मौके पर हम आपको उनके शेरों से रूबरू कराते हैं. 


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आहट सी कोई आए तो लगता है कि तुम हो 
साया कोई लहराए तो लगता है कि तुम हो 
जब शाख़ कोई हाथ लगाते ही चमन में 
शरमाए लचक जाए तो लगता है कि तुम हो 
संदल से महकती हुई पुर-कैफ़ हवा का 
झोंका कोई टकराए तो लगता है कि तुम हो 
ओढ़े हुए तारों की चमकती हुई चादर 
नद्दी कोई बल खाए तो लगता है कि तुम हो 
जब रात गए कोई किरन मेरे बराबर 
चुप-चाप सी सो जाए तो लगता है कि तुम हो 


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और क्या इस से ज़ियादा कोई नर्मी बरतूँ 
दिल के ज़ख़्मों को छुआ है तिरे गालों की तरह 


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लोग कहते हैं कि तू अब भी ख़फ़ा है मुझ से 
तेरी आँखों ने तो कुछ और कहा है मुझ से 


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आँखें जो उठाए तो मोहब्बत का गुमाँ हो 
नज़रों को झुकाए तो शिकायत सी लगे है 


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ये इल्म का सौदा ये रिसाले ये किताबें 
इक शख़्स की यादों को भुलाने के लिए हैं 


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आज तो मिल के भी जैसे न मिले हों तुझ से 
चौंक उठते थे कभी तेरी मुलाक़ात से हम 


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हम से पूछो कि ग़ज़ल क्या है ग़ज़ल का फ़न क्या 
चंद लफ़्ज़ों में कोई आग छुपा दी जाए 


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शर्म आती है कि उस शहर में हम हैं कि जहाँ 
न मिले भीक तो लाखों का गुज़ारा ही न हो 


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तुझे बाँहों में भर लेने की ख़्वाहिश यूँ उभरती है 
कि मैं अपनी नज़र में आप रुस्वा हो सा जाता हूँ 


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मुआफ़ कर न सकी मेरी ज़िंदगी मुझ को 
वो एक लम्हा कि मैं तुझ से तंग आया था