Azadi ka Amrit Mahotsav: कौन थे मोहम्मद अली जौहर जिनके अखबार से कांपती थी ब्रिटिश सरकार!

Sat, 13 Aug 2022-7:07 am,

Azadi ka Amrit Mahotsav 2022: आजादी के 75 साल की 75 कहानियों में आज हम आपको बताएंगे एक ऐसे स्वतंत्रता सेनानी के बारे में. जिसने अपने अखबार को बनाया था अपना हथियार. मैं बात कर रहा हूं. रामपुर के मौलाना मोहम्मद अली जौहर की. मोहम्मद अली जौहर का जन्म 10 दिसंबर 1878 को रामपुर उत्तरप्रदेश में हुआ था. उनके पिता का नाम अब्दुल अली खान था. पिता की मौत जल्दी होने के कारण सारी जिम्मेदारी मां पर आ गई. लेकिन उन्होंने पूरे जिम्मेदारी से अपने सभी बच्चों का पालन पोषण किया. जब मोहम्मद अली जौहर बड़े हुए तो पढ़ाई के लिए लंदन चले गए. लेकिन वापस आए तो देश में अंग्रेजों की गुलामी से परेशान अपने देशवासियों के देख उनसे रहा नहीं गया और उन्होंने अंग्रेजों से अपने देश की जनता को जगाने के लिए एक अखबार निकाला जिसका नाम था "कामरेड". उन्होंने अपने अखबार के जरिए लोगों को जगाने का काम किया और साथ साथ खिलाफत आंदोलन का भी खुलकर समर्थन करते हुए उस आंदोलन में काफी अहम भूमिका निभाई. लेकिन अंग्रेजों उनके इस अखबार से परेशान होकर उनके खिलाफ कानूनी कारवाई की और फिर उन्हें चार साल की सजा सुना दी.वह जेल चले गए. लेकिन जेल से निकलने के बाद उन्होंने एक मुस्लिम यूनिवर्सिटी” की स्थापना की जो बाद में “जामिया मिलिया इस्लामिया” के रूप में जाना जाने लगा. यह बात है साल 1931 की जब मुस्लिम लीग की प्रतिनिधि के रूप में मौलाना अली जौहर ने गोलमेज सम्मेलन में भाग लिया था. वहां उन्होंने भाषण के दौरान एक नारा दिया जिसे आज भी लोग याद करते हैं. उन्होंने कहा था ”या तो मुझे आजादी दो या मुझे मेरी कब्र के लिए दो गज की जगह दो. मैं एक गुलाम देश में वापस नहीं जाना चाहता” और शायद तकदीर को भी यही मंजूर था. गोलमेज सम्मेलन के तरुंत बाद 4 फरवरी 1931 को कामरेड के जनक ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया.

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