क्या आप जानते हैं, दुनिया का पहला कैमरा एक मुस्लिम साइंटिस्ट ने बनाया था?

Fri, 23 Sep 2022-6:17 pm,

Who was Ibn al-Haytham: ये जिस कैमरे से मैं आपके रु ब रु हूं. जो कैमरा आज हमारी ज़रुरत बन गया है. जिस कैमरे में हम अपनी ज़िंदगी के यादगार लम्हों को क़ैद कर लेते हैं. पता इसका सबसे पहले आईडिया देने वाला साइंटिस्ट एक मुसलमान था. उस साइंटिस्ट का नाम अबू अली अल हसन इब्ने हैथम (Ibn al-Haytham) था. ज़माने में वो इब्ने हैथम के नाम से मशहूर हैं. इब्ने हैथम (Ibn al-Haytham) ने सिर्फ़ कैमरा ही नहीं बनाया बल्कि जो चश्मा हम अपनी नज़र को मज़बूत करने के लिए लगाते हैं इसका अविष्कार इसका इजाद भी इब्ने हैथम ने ही किया है. इसी लिए इब्ने हैथम को फ़ादर ऑफ़ मॉर्डन ऑप्टिक्स (Father of Modern Optics) कहा जाता है. 965 ईसवी में इराक़ के शहर बसरा में पैदा हुए इब्ने हैथम ने रौशनी पर काम किया रौशनी को देखा, सोचा, समझा, ग़ौर किया तहक़ीक़ की रीसर्च की रौशनी को देखते देखते इस नतीजे पर पहुंचे की रौशनी यानी प्रकाश टेढ़ा-मेढ़ा नहीं चलता रौशनी सीधी चलती है, और जब ये रौशनी किसी सूराख़ या होल में पहुंचती है तो अंदर पहुंच कर उल्टा अक्स बनाती है. इसी रीसर्च और थ्योरी पर इन्होंने पहली बार पिन होल कैमरा बनाया इन्होंने एक चादर लेकर एक कमरा बनाया जिससे चादर के अंदर अंधेरा हो गया. इसमें इन्होंने सूराख़ किया सूराख से जो रौशनी आई. ये रौशमी जिस दीवार पर पड़ रही थी उसके अपोज़िट यानी सामने वाली दीवार पर रौशनी का अक्स पड़ा और एक फ़ोटो बनी जिसे रिफ़्लेक्शन ऑन द आप्टिकस (Reflection of Optics) कहा जाता है. ऐसा ये कई बार करते रहे. लगातार करते रहे और इसी रिफ़्लेक्शन को देखते रहे और इस तहक़ीक़ पर पहुंचे कि हमारी आंखे कैसे देखती हैं, और इसी रीसर्च के नतीजे में चश्मे का शीशा बनाने का फ़ार्मूला ढूंढ निकाला और चश्मा बना डाला. उसके बाद तो चश्मे बनने शुरु हो गए और आज तक दुनिया इन ऑप्टिकस से बेहिसाब फ़ायदा उठा रही है, और इसी तर्ज़ पर इन्होनें कैमरा भी ईजाद किया इसके लिए इन्होंने तर्जबे के लिए अल कमरा बनाया अल कमरा अरबी लफ़्ज़ है जिसका मतलब अंधेरे वाला कमरा होता है. इसी अल कमरा में तजर्बात करते करते उन्होंने कैमरा ईजाद किया. यही वजह है कि इस इक्वीपमेंट का नाम कैमरा पड़ा कैमरा नाम इब्ने हैथम के अल कमरा लैब से ही लिया गया. इसके अलावा भी कई ईजादात, कई सोच , कई तहक़ीक़, कई फ़लसफ़े इब्ने हैथम ने दुनिया के सामने पेश किए जिससे आज भी ये ज़माना फ़ायदा उठा रहा है. अपनी इस ईजाद से इब्ने हैथम ने ग्रीक साइंस को चैलेंज किया. ग्रीक साइंस कहती है थी कि आँखों में से एक रौशनी निकलती है, जो चीज़ो को जा कर लगती है, जिससे हम देख पाते है इब्न-अल-हेथम ने इस थ्योरी को रिजेक्ट कर दिया और कहा कि ये ग़लत नज़रिया है क्यूंकि अगर आँखों से रौशनी निकलती है तो हम दिन के अलावा रात को भी देख सकते हैं. हम रात के अंधेरे में क्यों नहीं देख पाते उन्होंने कहा कि ये बाहर की रौशनी होती है जो चीज़ो से टकरा कर हमारी आँखों में जाती है ना की हमारे आँखों में से रौशनी निकलती है. ये मुसलमानों का माज़ी है. लेकिन मौजूदा सूरतेहाल बड़ी अफ़सोसनाक है. जिस क़ौम ने दुनिया को कैमरा बनाने का आईडिया दिया. जिस क़ौम ने सर्जरी का तसव्वुर पेश किया जिसने एसिड की खोज की लोहे को ज़ग से बचाने का तरीक़ा खोजा, और ऐसी न जाने कितनी खोज, कितने अविष्कार और कितने ईजादात मुसलमानों ने किए. अल ग़रज़ की इल्मो फ़न में मुसलमानो का कोई सानी नहीं था. उस क़ौम का ये ज़वाल नहीं तो और क्या है कि पिछले 500 साल में मुसलमानों के तमाम काम को एक गठरी में बांध कर समंदर में फेंक दे तो दुनिया का कुछ नहीं बिगड़ेगा ये सोचने का मक़ाम है कि ऐसा क्यों हुआ लम्हे फ़िक्रिया है. इसीलिए हम तारीख़ के उन साइंसदानों का तारुफ़ आप से कराएंगे जिन्होंने क़ुरानों हदीस पर अमल करते हुए इस दुनिया को बहुत कुछ दिया है.

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