Urdu Poetry in Hindi: "...ज़िंदगी में क्या बुरा था ज़िंदगी में क्या न था"

Siraj Mahi
Nov 25, 2024

ग़ौर से देखते रहने की सज़ा पाई है, तेरी तस्वीर इन आँखों में उतर आई है

सवाल आ गए आँखों से छिन के होंटों पर, हमें जवाब न देने का फ़ाएदा तो मिला

दरिया की सम्त भागते जाएँगे सारी उम्र, आख़िर में अपनी प्यास को पानी करेंगे हम

रफ़्ता रफ़्ता मौत की जानिब बढ़ा क्यूँ हर कोई, ज़िंदगी में क्या बुरा था ज़िंदगी में क्या न था

उस ने तो यूँ ही पूछ लिया था कि कोई है, महफ़िल में उठा शोर ब-यक-लख़्त कि हम हम

दिल के दरिया में थिरकता था तिरी याद का चाँद, शब के होंटों पे तिरा ज़िक्र मुनाजात सा था

दरमियाँ जो जिस्म का पर्दा है कैसे होगा चाक, मौत किस तरकीब से हम को मिलाएगी न पूछ

फिर इस के बा'द बरामद न हो सका कुछ भी, हमारे आँख में जलता हुआ दिया तो मिला

जज़्ब होता जा रहा है दिल में दर्द-ए-ला-इलाज, क्या इसी मरहम से होना तय है दुनिया का इलाज

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