Urdu Poetry in Hindi: रहने दो कि अब तुम भी मुझे पढ़ न सकोगे...

Siraj Mahi
Dec 17, 2024

एक पल में वहाँ से हम उट्ठे, बैठने में जहाँ ज़माने लगे

तुम ज़माने की राह से आए, वर्ना सीधा था रास्ता दिल का

हर नए हादसे पे हैरानी, पहले होती थी अब नहीं होती

इस बदलते हुए ज़माने में, तेरे क़िस्से भी कुछ पुराने लगे

कश्तियाँ टूट गई हैं सारी, अब लिए फिरता है दरिया हम को

तेरी हर बात पे चुप रहते हैं, हम सा पत्थर भी कोई क्या होगा

दिल को आने लगा बसने का ख़याल, आग जब घर को लगा दी हम ने

हो गए चुप हमें पागल कह कर, जब किसी ने भी न समझा हम को

रहने दो कि अब तुम भी मुझे पढ़ न सकोगे, बरसात में काग़ज़ की तरह भीग गया हूँ

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