दुनिया में हर मजहब किसी न किसी सिद्धांत पर टिका है, जो उसके मौलिक उसूल होते हैं. उस धर्म के मानने वाले दिल से उन सिद्धांतों का पालन करते हैं. इस्लाम धर्म के भी 5 मौलिक सिद्धांत हैं.
एकेश्वरवाद (तकवा) - इस्लाम का ये सबसे मूलभूत सिद्धांत है. इस्लाम में एक खुदा के अलावा किसी की इबादत करने या उसके आगे झुकने का आदेश नहीं है. इसलिए इस्लाम में मूर्ति पूजा की मनाही है.
इस्लाम के पहले सिद्धांत में 4 और बातें हैं, जो इस सिद्धांत का हिस्सा है और इसपर दुनिया के हर मुस्लामना को आँख बंद कर भरोसा करना होता है. यानी ये भी ईमान का हिस्सा है.
आखिरी पैगम्बर पर ईमान: पैग़ंबर मोहम्मद साहब पूरी इंसानियत के लिए खुदा का संदेश लेकर धरती पर आने वाले आखिरी पैग़ंबर हैं. उनके बाद कोई और पैग़ंबर नहीं आएंगे. इसपर हर मुसलमान को यकीन रखना होता है.
खुदा के पैगंबरों पर ईमान- इस्लाम का मानना है कि खुदा ने अलग-अलग देश-काल और परिस्थितियों में 1 लाख 80 हजार पैगंबरों के जरिये अपना संदेश धरती पर भेजा है. उनमें कुछ के नाम कुरान में दर्ज हैं. इसलिए किसी दूसरे धर्म के आराध्य के प्रति असम्मान दिखने से इस्लाम में मना किया गया है.
फरिश्तों पर भरोसा: इस्लाम मानता है कि इंसान के अलावा खुदा के फरिश्ते मौजूद हैं, जिनका काम खुदा के आदेशों का पालन करना है. हालांकि, ये खुदा के जैसे पावरफुल नहीं है. इसका काम पैगंबरों के पास खुदा का संदेश ले जाने का होता है.
खुदा की किताबों पर ईमान- इस्लाम का मानना है कि आसमान से नाजिल हुई किताब कुरआन शरीफ में अल्लाह का पैगाम है. इसमें लिखी गई बातों पर अमल करना, खुदा का हुक्म मानने जैसा है.
आखिरत पर ईमान लाना- इस्लाम का मानना है कि हर इंसान को मरने के बाद कयामत के दिन फिर से जिंदा किया जाएगा और उससे दुनिया में किए गए उसके कर्मों का हिसाब-किताब लिया जाएगा. ये सब इस्लाम का पहला सिद्धांत है.
नमाज- इस्लाम का दूसरा सबसे बड़ा मौलिक सिद्धांत नमाज है. अगर कोई खुदा पर ईमान लाता है, तो उसे पांच वक्त की नमाज अनिवार्य तौर पर पढ़नी होगी.
रोजा- रोजा इस्लाम का तीसरा मौलिक सिद्धांत है. साल में एक महीने हर बालिग मुस्लिम को रोजा रखना होता है. रोजा का मुख्य उद्देश्य यह है कि हर इंसान दूसरों का दर्द, भूख-प्यास को महसूस कर सके. ताकि इंसान दूसरों के प्रति दयालु बना रहे.
जकात इस्लाम का चौथा मौलिक सिद्धांत है. अगर कोई आर्थिक रूप से सक्षम इंसान है, तो उसपर जकात फर्ज है. उसे अपने कमाए हुए दौलत से हर मुसलमान को 2.5 फीसद गरीबों में दान करना होगा. हालांकि, इस सिद्धांत का पालन करने से गरीबों को छूट दी गई है.
हज इस्लाम का पांचवा मौलिक सिद्धांत है, लेकिन यह सिर्फ आर्थिक रूप से सक्षम लोगों के लिए हैं. अगर कोई मुसलमान आर्थिक रूप से मजबूत है, तो उसे अपनी ज़िन्दगी में एक बार सऊदी अरब के मक्का में हज पर जाना चाहिए.