Urdu Poetry in Hindi: "...सैकड़ों दर थे मिरी जां तिरे दर से पहले"

Siraj Mahi
Oct 16, 2024

एक दिन देखने को आ जाते, ये हवस उम्र भर नहीं होती

रात आ कर गुज़र भी जाती है, इक हमारी सहर नहीं होती

हम भूल सके हैं न तुझे भूल सकेंगे, तू याद रहेगा हमें हाँ याद रहेगा

हम घूम चुके बस्ती बन में, इक आस की फाँस लिए मन में

हम किसी दर पे न ठिटके न कहीं दस्तक दी, सैकड़ों दर थे मिरी जाँ तिरे दर से पहले

वहशत-ए-दिल के ख़रीदार भी नापैद हुए, कौन अब इश्क़ के बाज़ार में खोलेगा दुकाँ

कूचे को तेरे छोड़ कर जोगी ही बन जाएँ मगर, जंगल तिरे पर्बत तिरे बस्ती तिरी सहरा तिरा

एक से एक जुनूँ का मारा इस बस्ती में रहता है, एक हमीं हुशियार थे यारो एक हमीं बद-नाम हुए

इस शहर में किस से मिलें हम से तो छूटीं महफ़िलें, हर शख़्स तेरा नाम ले हर शख़्स दीवाना तिरा

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