Urdu Poetry in Hindi: "ये ग़म नहीं है कि हम दोनों एक हो न सके..."

Siraj Mahi
Sep 22, 2024

तमाम रात नहाया था शहर बारिश में, वो रंग उतर ही गए जो उतरने वाले थे

उस एक छोटे से क़स्बे पे रेल ठहरी नहीं, वहाँ भी चंद मुसाफ़िर उतरने वाले थे

उसी मक़ाम पे कल मुझ को देख कर तन्हा, बहुत उदास हुए फूल बेचने वाले

ये कौन आने जाने लगा उस गली में अब, ये कौन मेरी दास्ताँ दोहराने वाला है

हज़ार तरह के थे रंज पिछले मौसम में, पर इतना था कि कोई साथ रोने वाला था

ये ग़म नहीं है कि हम दोनों एक हो न सके, ये रंज है कि कोई दरमियान में भी न था

दुनिया पसंद आने लगी दिल को अब बहुत, समझो कि अब ये बाग़ भी मुरझाने वाला है

याद रखना ही मोहब्बत में नहीं है सब कुछ, भूल जाना भी बड़ी बात हुआ करती है

'जमाल' हर शहर से है प्यारा वो शहर मुझ को, जहाँ से देखा था पहली बार आसमान मैं ने

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