Urdu Poetry in Hindi: तिरी तलाश में निकले तो इतनी दूर गए, कि हम से...

Siraj Mahi
Dec 19, 2024

कभी इस राह से गुज़रे वो शायद, गली के मोड़ पर तन्हा खड़ा हूँ

कलियों में ताज़गी है न फूलों में बास है, तेरे बग़ैर सारा गुलिस्ताँ उदास है

रुकी रुकी सी है बरसात ख़ुश्क है सावन, ये और बात कि मौसम यही नुमू का है

तिरी तलाश में निकले तो इतनी दूर गए, कि हम से तय न हुए फ़ासले जुदाई के

क़तरा न हो तो बहर न आए वजूद में, पानी की एक बूँद समुंदर से कम नहीं

दूर साहिल से कोई शोख़ इशारा भी नहीं, डूबने वाले को तिनके का सहारा भी नहीं

वो सादगी में भी है अजब दिलकशी लिए, इस वास्ते हम उस की तमन्ना में जी लिए

देखा नहीं वो चाँद सा चेहरा कई दिन से, तारीक नज़र आती है दुनिया कई दिन से

इक शम-ए-आरज़ू की हक़ीक़त ही क्या मगर, तूफ़ाँ में हम चराग़ जलाए हुए तो हैं

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