Urdu Poetry in Hindi: "...तुम से बिछड़ कर शहद भी खारा लगता है"

Siraj Mahi
Oct 13, 2024

ज़िंदगी शायद इसी का नाम है, दूरियाँ मजबूरियाँ तन्हाइयाँ

उस ने ये कह कर फेर दिया ख़त, ख़ून से क्यूँ तहरीर नहीं है

चाहता हूँ फूँक दूँ इस शहर को, शहर में इन का भी घर है क्या करूँ

मुझे मुस्कुरा मुस्कुरा कर न देखो, मिरे साथ तुम भी हो रुस्वाइयों में

आग का क्या है पल दो पल में लगती है, बुझते बुझते एक ज़माना लगता है

हम तरसते ही तरसते ही तरसते ही रहे, वो फ़लाने से फ़लाने से फ़लाने से मिले

तुम से मिल कर इमली मीठी लगती है, तुम से बिछड़ कर शहद भी खारा लगता है

मेरे दिल ने देखा है यूँ भी उन को उलझन में, बार बार कमरे में बार बार आँगन में

इक नया ज़ख़्म मिला एक नई उम्र मिली, जब किसी शहर में कुछ यार पुराने से मिले

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