रमजान रमजान का महीना चल रहा है. इस महीने में मुसलमान फर्ज और सुन्नतों को अदा करते हैं. मिस्वाक करना भी सुन्नत है. इसलिए इस महीने में मिसवाक का इस्तेमाल काफी बढ़ जाता है.
सुन्नत मिस्वाक करना प्रोफेट मोहम्मद स0 की सुन्नत है. मुसलमान मिस्वाक का इस्तेमाल मुंह की सफाई और दांतों की सेहत के लिए करते हैं.
मिस्वाक रिसर्च सऊदी अरब में आम तौर से साल्वाडोरा पर्सिका दरख्त से मिस्वाक बनती है. यह सूडान मिश्र और चाड़ में पाया जाता है. भारत और पाकिस्तान समेत दक्षिण एशिया में नीम के पेड़ की मिस्वाक काफी मशहूर है.
WHO और मिस्वाक मिस्वाक कई पेड़ों से बनाई जा सकती है, सिवाई उनके जो नुक्सान पहुंचाते हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने साल 1986 और 2000 में मुंह की सफाई के लिए मिस्वाक को जरूरी बताया.
मिस्वाक के फायदे किंग सऊदी यूनिवर्सिटी में दांतों के एक्सपर्ट ने एक रिसर्च में बताया है कि मिस्वाक को चबाने से इसमें से सिलिका निकलता है जो दातों से पीलापन खत्म करने और मुंह की बदबू मिटाने में मदद करता है.
कैंसर की दवा रिसर्च में ये भी बताया गया है कि मिस्वाक में कैल्शियम और फास्फोरस समेत 19 तरह की सेहत को बेहतर रखने वाली चीजें होती हैं. इससे मुंह का कैंसर भी ठीक होता है. दांत और मसूड़े मजबूत होते हैं.
आंख को फायदा एक रिसर्च में आया है कि मिस्वाक से न सिर्फ दिमाग और आंखों की रोशनी तेज होती है, बल्कि दिल को राहत मिलती है. इससे खाना भी हजम होता है. मिस्वाक से अवाज साफ रहती है. पेट साफ रहता है.
मिस्वाक पर हदीस हजरत अबुहुरैरा रजि0 से रिवायत है कि मोहम्मद स0 ने फरमाया कि "अगर मेरी उम्मत पर दुश्वारा ना होता है तो मैं उनको हर नमाज के वक्त मिस्वाक करने का हुक्म देता."