Urdu Poetry in Hindi: "सिर्फ़ हाथों को न देखो कभी आँखें भी पढ़ो..."

Siraj Mahi
Sep 21, 2024

कौन सी बात है तुम में ऐसी, इतने अच्छे क्यूँ लगते हो

गहरी ख़मोश झील के पानी को यूँ न छेड़, छींटे उड़े तो तेरी क़बा पर भी आएँगे

पलट के आ गई ख़ेमे की सम्त प्यास मिरी, फटे हुए थे सभी बादलों के मश्कीज़े

हर वक़्त का हँसना तुझे बर्बाद न कर दे, तन्हाई के लम्हों में कभी रो भी लिया कर

यूँ देखते रहना उसे अच्छा नहीं 'मोहसिन', वो काँच का पैकर है तो पत्थर तिरी आँखें

सिर्फ़ हाथों को न देखो कभी आँखें भी पढ़ो, कुछ सवाली बड़े ख़ुद्दार हुआ करते हैं

वफ़ा की कौन सी मंज़िल पे उस ने छोड़ा था, कि वो तो याद हमें भूल कर भी आता है

अब तक मिरी यादों से मिटाए नहीं मिटता, भीगी हुई इक शाम का मंज़र तिरी आँखें

लोगों भला इस शहर में कैसे जिएँगे हम जहाँ, हो जुर्म तन्हा सोचना लेकिन सज़ा आवारगी

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