Urdu Poetry in Hindi: "...तो रास्ता इसी दीवार से निकल आया"

Siraj Mahi
Oct 12, 2024

चलो इतनी तो आसानी रहेगी, मिलेंगे और परेशानी रहेगी

बाहर गली में चलते हुए लोग थक गए, तन्हाइयों का शोर था ख़ाली मकान में

जिधर से खोल के बैठे थे दर अंधेरे का, उसी तरफ़ से हमें रौशनी बहुत आई

मैं डूबता जज़ीरा था मौजों की मार पर, चारों तरफ़ हवा का समुंदर सियाह था

ऐसा है जैसे आँख की पुतली के वस्त में, नक़्शा बना हुआ है किसी ख़्वाब-ज़ार का

आँखों में राख डाल के निकला हूँ सैर को, शाख़ों पे नाचते हैं शरर मेरे सामने

कोई इस बात को तस्लीम करे या न करे, सुब्ह की सैर ने मुझ को दिल बीमार दिया

हर नया ज़ाइक़ा छोड़ा है जो औरों के लिए, पहले अपने लिए ईजाद भी ख़ुद मैं ने किया

लट पड़ा जो मैं सर फोड़ कर मोहब्बत में, तो रास्ता इसी दीवार से निकल आया

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