Indian Leaving Citizenship: भारतीयों का विदेशों में बसने का इतिहास पुराना रहा है, लेकिन भारत और दूसरे देशों में ब्रितानी शासन स्‍थापित होने के बाद ही बड़े पैमाने पर यह क्रम शुरू हुआ. भारतीयों को 1834 की शुरुआत में गुयाना, मॉरीशस, फिजी और दक्षिण अफ्रीका जैसे ब्रिटिश उपनिवेशों में चीनी बागानों में काम करने के लिए गिरमिटिया मजदूर के तौर पर भेजा गया था. इसके बाद, राजनीतिक उत्पीड़न और बेहतर आर्थिक चारागाहों की तलाश कुछ ऐसे कारक थे जिनके कारण आप्रवासन में वृद्धि हुई. लेकिन हाल के दिनों में, पीड़ित के रूप में देखे जाने की बजाय भारतीय अपने अपनाए हुए देश की अर्थव्यवस्था, समुदाय और राजनीति में उल्लेखनीय योगदान देते हुए नेतृत्व में भूमिका निभा रहे हैं.


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विदेश में बड़े पदों पर भारतीय


संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2020 में 1.8 करोड़ लोगों के साथ अपनी मातृभूमि से बाहर रहने वालों की सबसे बड़ी आबाद भारतीयों की थी. इंडियास्‍पोरा रिपोर्ट के मुताबिक, वर्तमान में, भारतीय मूल के 200 से अधिक लोग कम से कम 15 देशों में शीर्ष पदों पर काम करते हैं, जिनमें अमेरिकी उपराष्ट्रपति कमला हैरिस, ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक, गुयाना के राष्ट्रपति इरफान अली और विश्व बैंक के अध्यक्ष अजय बंगा शामिल हैं. 


हर दिन 618 लोगों ने छोड़ी भारतीय नागरिकता


सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, 2011 के बाद से 16 लाख से ज्यादा भारतीयों ने अपनी नागरिकता छोड़ दी है, जिसमें अकेले 2022 में 2,25,620 लोग शामिल हैं. यानी औसतन हर दिन 618 लोग. इस साल की हेनले प्राइवेट वेल्थ माइग्रेशन रिपोर्ट के मुताबिक, 2023 में 6,500 करोड़पति भारत छोड़ने के लिए तैयार हैं, जबकि ग्लोबल वेल्थ माइग्रेशन रिव्यू के आंकड़े बताते हैं कि देश के दो प्रतिशत करोड़पति 2020 में पहले ही विदेश जा चुके हैं.


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अपने आप खत्म हो जाती है नागरिकता


भारत सरकार ने कहा है कि लोग "अपनी निजी वजहों से" भारतीय नागरिकता छोड़ देते हैं. चूंकि भारत दोहरी नागरिकता की इजाजत नहीं देता है, दूसरे देश की नागरिकता लेने से भारतीय नागरिकता अपने आप खत्म हो जाती है. सिडनी में भारत के पूर्व महावाणिज्यदूत अमित दासगुप्ता ने बताया, "लोगों के प्रवास की अहम वजह आर्थिक है. हर कोई बेहतर जीवन चाहता है और उनकी उम्मीद है कि उन्हें यह दूसरे देश में मिलेगा."


स्टूडेंट को नहीं मिलती नौकरी


दासगुप्ता के मुताबिक, "समाजशास्त्र में, इसे 'पुश फैक्टर' कहा जाता है. आपको ऐसी जगह पर धकेल दिया जाता है जो बेहतर संभावनाएं देती है. कई भारतीय छात्र जो विदेश में उच्च अध्ययन के लिए जाते हैं, वे भी वहीं बस जाते हैं क्योंकि ये देश उन्हें अच्छी तन्ख्वाह के साथ अच्छी नौकरी नहीं देता है." शिक्षा मंत्रालय के नए आंकड़ों के अनुसार, 2022 में 7,70,000 से अधिक भारतीय छात्र अध्ययन के लिए विदेश गए- जो छह साल का उच्चतम स्तर है. इसके अलावा, कई भारतीय छात्रों को घर लौटने के बाद नौकरी ढूंढना कठिन लगता है. यही वजह है कि वे अपनी पढ़ाई के देश में रहने के लिए अप्लाई करते हैं. एक अंदाजे के मुताबिक 90 प्रतिशत से ज्यादा छात्र भारत वापस नहीं आना चाहते हैं.


अच्छी आबो हवा के लिए छोड़ रहे देश


2020 ग्लोबल वेल्थ माइग्रेशन रिव्यू रिपोर्ट में कहा गया है कि लोगों इसलिए भी देश छोड़ रहे हैं कि वह महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा चाहते हैं. वह जलवायु और प्रदूषण से बचना चाहते हैं. जीवनशैली में बदलावा चाहते हैं. वह परिवार के लिए बेहतर स्वास्थ्य सुविधा चाहते हैं. इसके अलावा बच्चों की अच्छी शिक्षा के लिए विदेश का रुख करते हैं.


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