नई दिल्लीः दुनिया में शांति और सुरक्षा की संरक्षक मानी जाने वाली सर्वोच्च संस्था संयुक्त राष्ट्र की प्रमुख इकाई सुरक्षा परिषद् की आज ही के दिन यानी 17 जनवरी 1946 को पहली बैठक हुई थी. सुरक्षा परिषद् संयुक्त राष्ट्र के छह प्रमुख अंगों में से एक है. विश्व में शांति और सुरक्षा बनाए रखने के लिए सुरक्षा परिषद् के पास अहम कदम उठाने और दण्ड देने के अधिकार हैं. संयुक्त राष्ट्र के नए सदस्य बनाने का अधिकार इसी को है. द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद वजूद में आए इस संगठन से उम्मीद की गई थी कि ये दुनिया में आगे युद्ध को रोेकने का काम करेगी. यह सच है कि अबतक तृतीय विश्व युद्ध या उसकी आहट नहीं हुई है लेकिन इसके बावजूद सुरक्षा परिषद अपने मकसद में कितना सफल रहा है इसकी पड़ताल जरूरी है. इस संगठन के रहते हुए दुनिया के कई देशों में जंग हुए हैं और उनमें सुरक्षा परिषद् में शामिल पांच स्थाई देशों में कोई न कोई सीधे या अप्रत्यक्ष तौर पर इन देशों के समर्थन या विरोध में खड़ा भी रहा है. 

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इतिहास के आईने में सुरक्षा परिषद
सुरक्षा परिषद की स्थापना 1945 में संयुक्त राष्ट्र के एक चार्टर द्वारा की गई थी. यह संयुक्त राष्ट्र के छह प्रमुख अंगों में से एक है. संयुक्त राष्ट्र के अन्य 5 अंगों में संयुक्त राष्ट्र महासभा, ट्रस्टीशिप परिषद, आर्थिक और सामाजिक परिषद, अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय एवं सचिवालय शामिल है. यह मुख्य तौर पर अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा बनाए रखने के लिए जिम्मदार होता है. इसका मुख्यालय न्यूयॉर्क में है.

सदस्यता और भारत 
सुरक्षा परिषद में कुल 15 सदस्य होते हैं. इसमें पांच स्थाई सदस्य हैं जबकि दस अस्थाई स्दस्यों को चुनाव प्रत्येक दो साल पर किया जाता है. पांच स्थाई सदस्यों में संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस, फ्राँँस, चीन और यूनाइटेड किंगडम हैं. भारत को पिछले वर्ष 2021 में आठवीं बार अस्थाई सदस्य के रूप में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में शामिल किया गया है जबकि भारत कई सालों से सुरक्षा परिषद के स्थाई सदस्यता की मांग कर रहा है. भारत के अलावा जर्मनी, ब्राजील, जापान और दक्षिण अफ्रीका जैसे देश में स्थाई सदस्यता की मांग करते रहे हैं. भारत के स्थाई सदस्यता की मांग का सुरक्षा परिषद् के पांच स्थाई सदस्यों में से  अमेरिका, फ्रंास, ब्रिटेन और रूस ने हमेशा समर्थन किया है, लेकिन चीन इसमें अपने वीटो पाॅवर का इस्तेमाल कर भारत के प्रस्ताव को खारिज कर देता है. 

सुरक्षा परिषद् की सदस्यता ही इसकी उपयोगिता में है बड़ी बाधा  
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् का जिस महान उद्देश्यों को लेकर गठन किया गया था, उसमें यह कुछ हद तक सफल रहा है, लेकिन इसमें शामिल पांच स्थाई सदस्योें और उसके वीटो पाॅवर के कारण क्षेत्रीय स्तर पर होने वाले दो देशों के बीच के झगड़े, छोटे देशों में महाशक्तियों के अपने हित और उसके टकराव के कारण सुरक्षा परिषद कई बार कमजोर और वीटो पाॅवर प्राप्त देशों के हितों से टकराव रखने पर देशों के खिलाफ भी काम करता है. सुरक्षा परिषद के प्रत्येक सदस्य का एक मत होता है. सभी मामलों पर सुरक्षा परिषद के निर्णय स्थाई सदस्यों सहित नौ सदस्यों के सकारात्मक मत द्वारा लिए जाते हैं, जिसमें सदस्यों की सहमति जरूरी है. पांच स्थाई सदस्यों में से अगर कोई एक भी प्रस्ताव के विपक्ष में वोट देता है तो वह प्रस्ताव पारित नहीं होता है और यहीं से सुरक्षा परिषद का दोहरा चरित्र और भेदभाव वाला रवैया सामने आ जाता है. 

आपसी हितों का टकराव और क्षेत्रीय संतुलन  
भारत यूएनओ का शुरूआती सदस्य देश है. भारत ने अब तक 43 शांति अभियानों में हिस्सा लिया है, लेकिन भारत अपने पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान के मामले मे ंहमेशा यूएन में पाकिस्तान समर्थित वीटो पाॅवर वाले देश चीन की वजह से अपने अभियानों में पिछड़ जाता है. पाकिस्तान के खिलाफ की जाने वाली हर अंतरार्राष्ट्रीय कार्रवाई में चीन अपने वीटो पावर से अडं़गा डाल देता है. कमोबेश यही हाल यूरोप और अमेरिका का भी है. पश्चिमी देश सुरक्षा परिषद का इस्तेमाल मनमाने तौर पर अपना हित साधने के लिए करते हैं. मध्यपूर्व के देशों में अमेरिका और रूस हमेशा से अपनी दखल और आपसी वर्चस्व के कारण युद्ध जैसे हालात पैदा कर रखते हैं. ईरान, तुर्की, उत्तर कोरिया और कभी भारत पर लगाए गए आर्थिक प्रतिबंध को भी इसी संदर्भ में देखा जाना चाहिए. सुरक्षा परिषद बड़े बदलावों से हमशा बचता है और यह यथास्थिति बनाए रखने का हिमायती है.     


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