हर साल 15 मार्च को मनाया जाएगा `इस्लामोफोबिया विरोधी दिवस`; UNO ने की घोषणा
International Anti Islamophobia Day: संयुक्त राष्ट्र ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि दुनियाभर में मुसलमानों के प्रति संदेह, भेदभाव और एकमुश्त नफरत ;महामारी के अनुपात’ तक पहुंच गई है. इस मुस्लिम विरोधी नफरत को खत्म करने के लिए हर साल 15 मार्च को इस्लामोफोबिया विरोधी दिवस मनाया जाएगा
नई दिल्लीः संयुक्त राष्ट्र संघ ने दुनियाभर में मुस्लिमों के खिलाफ बढ़ती नफरत, भेदभाव और हिंसा के खिलाफ ठोस कार्रवाई करने के मकसद से और इस्लामोफोबिया से मुकाबला करने के लिए हर साल 15 मार्च को “अंतर्राष्ट्रीय इस्लामोफोबिया-विरोधी दिवस’’ के रूप में मनाने का संकल्प लिया है. संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने तस्दीक करते हुए कहा है की कि यह कदम ’मुस्लिम विरोधी नफरत को खत्म करने के लिए की जा रही कार्रवाई की अपील’ है. उन्होंने ट्विटर पर लिखा, “भेदभाव हम सभी को बर्बाद करता है. हमें इसके खिलाफ खड़ा होना चाहिए. हमें हर दिन अपनी मानवता के द्वारा ऐसी विभाजनकारी ताकतों का मुकाबला करना चाहिए.“
महामारी बन गई है इस्लामोफोबिया
पिछले साल, संयुक्त राष्ट्र महासभा ने इस्लामिक सहयोग संगठन की तरफ से पाकिस्तान द्वारा प्रस्तुत एक सर्वसम्मत प्रस्ताव को स्वीकार किया था, जिसमें 15 मार्च को इस्लामोफोबिया का मुकाबला करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय दिवस के रूप में मनाए जाने का प्रस्ताव था. संयुक्त राष्ट्र ने कहा कि हाल ही में धर्म या विश्वास की स्वतंत्रता पर संयुक्त राष्ट्र की एक विशेष रिपोर्ट ने संकेत दिया कि “मुसलमानों के प्रति संदेह, भेदभाव और एकमुश्त नफरत ’महामारी के अनुपात’ तक पहुंच गई है.“
मुसलमानों को होना पड़ता है भेदभाव का शिकार
संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट इस बात की गवाही देती है कि जिन देशों में मुसलमान अल्पसंख्यक हैं, वहां उन्हें अक्सर वस्तुओं और सेवाओं तक पहुँचने, काम खोजने और शिक्षा प्राप्त करने में भेदभाव का सामना करना पड़ता है. यह कहते हुए मुसलमान राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा हैं कुछ देशों में उन्हें नागरिकता या कानूनी आव्रजन स्थिति से वंचित कर दिया जाता है. संयुक्त राष्ट्र ने कहा कि इस्लामोफोबिक घृणा अपराधों में मुस्लिम महिलाओं को असमान रूप से लक्षित किया जाता है.
लोकतंत्र के लिए खतरा है इस्लामोफोबिया
इस्लामिक सोसाइटी ऑफ ग्रेटर ह्यूस्टन के एक सदस्य हिसाम गैलियन ने कहा, “इस्लामोफोबिया एक विश्वव्यापी मुद्दा है. इस्लामोफोबिया को दूर करने का एकमात्र तरीका दुनिया को संदेश देना है. हमें इसके बारे में बात करने की ज़रूरत है. अगर यह नहीं करेंगे तो किसी समस्या का समाधान नहीं कर सकते. पिछले हफ्ते, संयुक्त राष्ट्र में तुर्की के राजदूत ने कहा कि इस्लामोफोबिया “लोकतंत्र के लिए एक बड़ा खतरा“ बन गया है और पवित्र कुरान और मस्जिदों का अपमान बढ़ रहा है.
क्या होता है इस्लामोफोबिया ?
इस्लामोफोबिया मुसलमानों के प्रति दूसरे धर्मों के लोगों में एक प्रकार का भय, पूर्वाग्रह और घृणा है जो ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों स्थानों पर दिखता है. यह दुनिया भर के दूसरे धर्मों के लोगों में मुसलमानों के प्रति धमकी, उत्पीड़न, दुर्व्यवहार, शत्रुता और असहिष्णुता की प्रेरणा देता है. यह संस्थागत, वैचारिक, राजनीतिक और धार्मिक शत्रुता से प्रेरित होकर संरचनात्मक और सांस्कृतिक नस्लवाद में बदल जाता है. यह मुस्लिम होने के प्रतीकों को लक्षित करता है. इस इस्लामोफोबिया में इस्लाम धर्म, परंपरा और संस्कृति को अपने धार्मिक मूल्यों और संस्कृति के लिए एक खतरे के तौर पर देखा जाता है. इस्लामोफोबिया राष्ट्रीयता, नस्लीय या जातीय पृष्ठभूमि की धारणाओं के आधार पर गैर-मुस्लिमों को भी प्रभावित कर सकता है.
Zee Salaam