मुंबईः मुंबई में पैदा हुए ब्रिटिश-अमेरिकी उपन्यासकार सलमान रुश्दी ( Salman Rushdie  Satanic Verses) पर न्यूयार्क में हुए हमले ने दुनिया को झकझोर कर रख दिया है. दुनिया भर के लेखक, साहित्यकार, पत्रकार और अभिव्यक्ति की रक्षा के पैरोकारों ने रुश्दी पर इस हमले की निंदा की है. हमला करने वाले शख्स को पुलिस ने गिरफ्तार कर जेल भेज दिया है, लेकिन अभी तक हमले का मोटिव सामने नहीं आया है. हालांकि ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है कि, उनपर हमला करने वाला नौजवान 33 साल पहले आई रुश्दी के उपन्यास ’सैटनिक वर्सेस’ से नाराज था. ये वही किताब थी, जिसके प्रकाशन के बाद दुनियाभर के मुसलमानों ने रुश्दी के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन किए थे.  


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1988 में प्रकाशित उनकी कृति ’द सैटेनिक वर्सेज’ से नाराज ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला रूहोल्लाह खुमैनी ने सलमान रुश्दी को फांसी देने का फतवा जारी कर दिया था और उन्हें पकड़कर लाने या मारने वालो को 3 मिलियन अमेरिकी डॉलर इनाम देने का वादा किया था. सलमाल रुश्दी पर हुए मौजूदा हमले का उसी संदर्भ में देखा जा रहा है. 


गौरतलब है कि 1989 में इस पुस्तक के प्रकाशन के बाद दुनिया के कई हिस्सों में हुए विरोध-प्रदर्शन में 45 लोग मारे गए थे. इनमें सिर्फ मुंबई में 12 लोगों की मौत हुई थी. ये वही शहर था, जहां सलमान रुश्दी पैदा हुए थे. दक्षिण मुंबई के क्रोफॉर्ड मार्केट के नजदीक 14 फरवरी, 1989 को प्रदर्शनकारियों पर की गई पुलिस फायरिंग में कम से कम 12 अफराद की मौत हो गई थी. 


1991 में, पुस्तक के एक जापानी अनुवादक को भी  मौत के घाट उतार दिया गया था.  एक इतालवी अनुवादक चाकू के हमले से बच गया था. 1993 में, पुस्तक के नॉर्वेजियन प्रकाशक को तीन बार गोली मारी गई, लेकिन वह भी बच गया था. 
हालांकि, इस घटना के सालों बाद सलमान रुश्दी ने मुंबई सहित देश के कई शहरों की कई बार यात्राएं की, लेकिन भारत में उनके विरोध में कोई अप्रिय घटना आजतक नहीं घटी. 


उस दिन ऐसा क्या हुआ कि 12 लोग मारे गए ? 
14 फरवरी, 1989 को मुंबई में हुई घटना को कवर करने वाले तत्कालीन पत्रकार सरफरोज़ आरज़ू बताते हैं, ’’रुश्दी के विवादित पुस्तक ‘द सैटेनिक वर्सेज’ के खिलाफ मुंबई पुलिस आयुक्त कार्यालय के नजदीक एक भीड़भाड़ इलाके में विरोध-प्रदर्शन आयोजित किया गया था. प्रदर्शनकारियों का इरादा हिंसा करने का नहीं था, और उस इलाके में दुकानें और अन्य प्रतिष्ठान हमेशा की तरह खुले हुए थे. विरोध मार्च दोपहर करीब 12 बजे नागपाड़ा के मस्तान तालाब से शुरू हुआ और जेजे जंक्शन रास्ते से आजाद मैदान की तरफ बढ़ा. पुलिस ने मोहम्मद अली मार्ग पर बम्बई मर्केंटाइल बैंक के नजदीक प्रदर्शनकारियों को रोक दिया था. पुलिस ने एक प्रतिनिधिमंडल को मांगों का मेमोरैंडम देने की इजाजत दी थी और लोगों को वहां से हट जाने को कहा. करीब दोपहर तीन बजे पुलिस ने भीड़ को तितर-बितर करने के लिए गोलियां चलाई, जिसमें 12 अफराद की मौत हो गई और 40 दीगर घायल हो गए.’’ सरफरोज़ आरज़ू कहते हैं, ’’उस दिन की फायरिंग का ये हादसा मुंबई पुलिस के इतिहास की सबसे दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं में से एक थी.’’  
हालांकि कुछ दूसरे समकालीन पत्रकारों के मुताबिक, भीड़ के बीच से पुलिस पर गोली चलाई गई थी, जिसके बाद पुलिसकर्मियों ने फायरिंग शुरू की थी. 

भारत में किसी ने वह उपन्यास पढ़ी ही नहीं थी 
महाराष्ट्र के पुलिस पुलिस महानिदेशक डी. शिवानंदन कहते हैं, ’’ रुश्दी के उपन्यास के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन करने के लिए मुस्लिम समुदाय के हजारों लोग क्रोफॉर्ड मार्केट में जमा हुए थे, लेकिन सच्चाई ये थी कि न तो मुस्लिम समुदाय के प्रदर्शनकारियों ने और न ही पुलिसवालों ने वह उपन्यास पढ़ी थी. चूंकि भारत सरकार ने पहले ही उस उपन्यास पर प्रतिबंध लगा दिया था. ऐसे में कानून-व्यवस्था की समस्या पैदा करने वाला यह प्रदर्शन टाला जा सकता था.


वहीं, एक न्यूज एजेंसी के पूर्व सवांददाता और दुनिया के लगभग 60 देशों की यात्राएं कर चुके वरिष्ठ पत्रकार ने यहां तक दावा किया था कि उस किताब में ऐसा कुछ था ही नहीं. उन्होंने कहा था कि एक साक्षात्कार में रुश्दी ने उन्हें बताया कि शुरुआत में उन्होंने पब्लिशिटी पाने के लिए ऐसे तिकरम अपनाए थे, लेकिन बाद में ये खुद मुसीबत बनकर उनके गले पड़ गई!   



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