Chhath Puja 2023: माता सीता पहली बार मुंगेर में की थी छठ पूजा, पदचिन्ह आज भी देते हैं गवाही
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Chhath Puja 2023: माता सीता पहली बार मुंगेर में की थी छठ पूजा, पदचिन्ह आज भी देते हैं गवाही

Chhath Puja 2023: धार्मिक मान्यता के अनुसार माता सीता  ने सर्वप्रथम पहला छठ पूजा बिहार के मुंगेर में गंगा तट पर किया था. जिसके बाद महापर्व छठ की शुरुआत हुई. छठ को बिहार का महापर्व माना जाता है. यह पर्व बिहार के साथ देश के अन्य राज्यों में भी बड़े  धूम - धाम के साथ मनाई जाती है.

Chhath Puja 2023: माता सीता पहली बार मुंगेर में की थी छठ पूजा, पदचिन्ह आज भी देते हैं गवाही

मुंगेर: Chhath Puja 2023: धार्मिक मान्यता के अनुसार माता सीता  ने सर्वप्रथम पहला छठ पूजा बिहार के मुंगेर में गंगा तट पर किया था. जिसके बाद महापर्व छठ की शुरुआत हुई. छठ को बिहार का महापर्व माना जाता है. यह पर्व बिहार के साथ देश के अन्य राज्यों में भी बड़े  धूम - धाम के साथ मनाई जाती है. बिहार के मुंगेर में छठ पर्व का विशेष महत्व है. छठ पर्व से जुड़ी कई अनुश्रुतियां है लेकिन धार्मिक मान्यता के अनुसार माता सीता ने सर्वप्रथम पहला छठ पूजा बिहार के मुंगेर में  गंगा तट पर किया था. इसके बाद से महापर्व की शुरुआत हुई. इसके प्रमाण स्वरूप  आज भी माता सीता के चरण चिन्ह यहां मौजूद है. जिस स्थान पर माता सीता ने छठ पूजा की थी. बबुआ घाट के पश्चिमी तट पर आज भी माता का चरण चिन्ह मौजूद है. यह एक विशाल पत्थर पर अंकित है. पत्थर पर दोनों चरणों के निशाना है.

वाल्मीकि और आनंद रामायण के अनुसार ऐतिहासिक नगरी मुंगेर के सीता चरण में मां छह दिन तक रहकर छठ पूजा की थी. प्रभु श्री राम जब 14  वर्ष वनवास के बाद अयोध्या लौटे थे तो रावण वध के पाप मुक्त होने के लिए ऋषि -मुनियों के आदेश पर राजसूय यज्ञ करने का फैसला लिया. इसके लिए मुद्गल ऋषि को आमंत्रण दिया गया था लेकिन मुद्गल ऋषि ने भगवान राम एवं सीता को अपने ही आश्रम में आने का आदेश दिया. जिसके बाद मुद्गल ऋषि ने माता सीता को सूर्य की उपासना करने की सलाह दी थी. मुद्गल ऋषि के कहने पर माता सीता ने व्रत रखी थी.

मुद्गल ऋषि के आदेश पर भगवान राम और माता सीता पहली बार मुंगेर आए थे. यहां पर ऋषि के आदेश पर माता सीता ने कार्तिक की षष्ठी तिथि पर भगवान सूर्य देव की उपासना मुंगेर के बबुआ  गंगा घाट के पश्चिमी तट छठ व्रत किया था. जिस जगह पर माता सीता ने व्रत किया वहां पर माता सीता का एक विशाल चरण चिन्ह आज भी मौजूद है, इसके अलावा शिलापट्ट पर सूप, डाला और लोटा के निशान हैं. मंदिर का गर्भगृह साल में छह महीने तक गंगा के गर्भ में समाया रहता है. जलस्तर घटने पर छह महीने ऊपर रहता है. इस मंदिर को सीता चरण मंदिर के नाम से भी जाना जाता है. वहीं  सीता मां के पद चिन्ह के दर्शन के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं.

इनपुट- प्रशांत कुमार सिंह

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