प्रदेश सरकार शिक्षा व्यवस्था में सुधार के लिए तमाम दावे करती है लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही है.
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बलरामपुर: प्रदेश सरकार शिक्षा व्यवस्था में सुधार के लिए तमाम दावे करती है लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही है. सरकारी स्कूलों में शिक्षा के स्तर में सुधार की बातें हवाहवाई ही नजर आती है. बच्चों को सरकारी स्कूलों में कैसी शिक्षा मिल रही है, इससे जुड़ा एक मामला सामने आया है. छत्तीसगढ़ के बलरामपुर में पांचवीं पास एक छात्र अपना नाम तक लिख पाता है. छात्र के परिजन गुरुवार को जब छठवीं में उसका दाखिला कराने पहुंचे तो, पता चला कि वह अपना नाम भी नहीं लिख पा रहा है. वहीं स्कूल ने उसका दाखिला करने से मना कर दिया. परिजन छात्र के दाखिले को लेकर दर-दर भटक रहे हैं. फिलहाल मामला किशोर न्याय बोर्ड समिति में चला गया है. बोर्ड ने स्कूल और शिक्षा विभाग को नोटिस जारी किया है.
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अंगूठे का लगाया निशान
दरअसल, बलरामपुर के कृष्णनगर गांव का रहने वाला धीरज नागवंशी पांचवीं पास है, लेकिन उसे अपना नाम तक लिखने नहीं आता. इस बात का खुलासा तब हुआ, जब उसके परिवार वाले आगे की पढ़ाई के लिए उसका दाखिला कराने गए. स्कूल में धीरज को अपना नाम लिखने को कहा गया तो उसने अंगूठे का निशान लगा दिया. ये देख स्कूल के टीचर ने धीरज से बातचीत की तो पाया कि उसे बिल्कुल भी अक्षर का ज्ञान नहीं है. धीरज एक गरीब परिवार से ताल्लुक रखता है और उसके परिवार के पास इतने पैसे नहीं हैं कि उसका प्राइवेट स्कूल में एडमिशन करा सकें. परिजनों ने बताया कि बीमार होने के कारण अक साल तक उसकी पढ़ाई बाधित रही थी.
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अटेंडेंस पॉलिसी भी है जिम्मेदार
धीरज के परिवार में कोई पढ़ा-लिखा नहीं है. छात्र के परिजन चाहते थे कि उनका बेटा पढ़-लिख कर बड़ा आदमी बने. यही सोचकर उन्होंने गांव के सरकारी स्कूल में उसका दाखिला करा दिया. वहीं छात्र को स्कूल में जिस तरह की शिक्षा मिली है, उसे जानकर मां-बाप के सपने बिखरकर रह गए. छात्र को पढ़ाने में सरकारी स्कूल के अध्यापकों ने तो लापरवाही बरती ही है. साथ ही सरकारी स्कूल की अटेंडेंस पॉलिसी भी इसके लिए कम जिम्मेदार नहीं है. आपको बता दें कि दो साल पहले सरकार ने अटेंडेंस पॉलिसी लागू की थी. इसके तहत पहली से आठवीं क्लास तक अटेंडेंस बेस पर बच्चों को पास करने की स्कीम है.
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टीचरों ने दिए अजीब से तर्क
हालांकि अटेंडेंस पॉलिसी का ये मतलब नहीं है कि बच्चों को शिक्षा ही न दी जाए. वहीं छात्र को देखकर साफ जाहिर है कि सरकार की इस पॉलिसी का नाजायज फायदा उठाकर अध्यापकों ने शिक्षा के स्तर को ही फेल कर दिया है. इस मामले की पोल खुलने के बाद तरह-तरह के तर्क दिए जा रहे हैं. टीचरों का कहना है कि छात्र की तबीयत खराब रहती है. वो जल्दी भूल जाता है. उसे याद आ जाएगा. वहीं मामला किशोर न्याय बोर्ड समिति में चला गया है. बोर्ड ने स्कूल और शिक्षा विभाग को नोटिस जारी कर पूछा है कि आखिर पांचवीं पास छात्र को अक्षर ज्ञान क्यों नहीं है.