छत्तीसगढ़ः सावन सोमवार में भूतेश्वर मंदिर में उमड़ा भक्तों का मेला
Advertisement

छत्तीसगढ़ः सावन सोमवार में भूतेश्वर मंदिर में उमड़ा भक्तों का मेला

 यहां से शेर और चीतों के दहाड़ने की आवाज आती थी, लेकिन जब लोग यहां आकर रहने लगे तो पता चला कि यह आवाज किसी जानवर की नहीं बल्कि बैल के भुंखारने की आवाज है. 

मान्यता है कि इस मंदिर से आज भी शिव जी के वाहन, बैल के भुंखारने की आवाज आती है

बलराम नायक, नई दिल्लीः छत्तीसगढ़ के गरियाबंद में स्थित भूतेश्वर मंदिर में एशिया का सबसे बड़ा शिवलिंग मौजूद है. गरियाबंद से 3.5 किमी दूर स्थित ग्राम मरोद में सावन के दिनों में शिवभक्तों का मानो मेला ही लग जाता है. बता दें भूतेश्वर मंदिर की खोज करीब 30 वर्ष पहले हुई थी. दरअसल, घने जंगलों के बीच होने के चलते पहले लोग यहां आने से डरते थे. यहां से शेर और चीतों के दहाड़ने की आवाज आती थी, लेकिन जब लोग यहां आकर रहने लगे तो पता चला कि यह आवाज किसी जानवर की नहीं बल्कि बैल के भुंखारने की आवाज है. तब से लोग इस शिवलिंग की पूजा करने लगे. आज भी शांत माहौल में वहां यह आवाज कुछ लोगों को सुनाई देती है. कुछ सालों पहले एक साधु महात्मा ने कहा कि यह किसी जानवर की नहीं बल्कि शिवजी के वाहन बैल का आवाज है. यह शिवलिंग जंगल के अंदर होने के कारण इसके बारे में कोई जानता नहीं था, लेकिन गरियाबंद के लोग इसके बारे में धीरे-धीरे जानने लगे हैं. ऐसा माना जाता है कि यह एशिया का सबसे बडा शिवलिंग है. इससे बड़ा शिवलिंग कहीं नहीं है. इस शिवलिंग की ऊंचाई 75 फीट और चौड़ाई 220 फीट है.

भूतेश्वर मंदिर के पास ही बम्हनी माता का मंदिर है
बता दें भूतेश्वर मंदिर के पास ही बम्हनी माता का मंदिर है. जिसे शास्त्र में ब्राम्हणी माता के नाम से जाना जाता है. यह मंदिर मुख्यद्वार के दाहिने ओर है. इसके बाईं ओर राम-सीता का मंदिर है. कोई भी भक्त भूतेश्वर महादेव के दर्शन दूर से भी कर सकता है. आज से 20 वर्ष पहले जब इसकी आकृति छोटी थी तब इसके आस-पास कोई और अन्य पत्थर नही था. यह एक अकेला शिवलिंग ही दिखाई पडता था. मेन रोड से दूर जंगल के अंदर होने के कारण इसे कोई जान नही पाया था. यह जंगल के अंदर एक छोटे से गांव में है. यह एक स्वयंभू शिवलिंग है. इसकी उत्पत्ति कैसे हुई इसके बारे में कोई नहीं जानता.

स्थानीय लोगों ने एक समिति का निर्माण किया है
- भूतेश्वर मंदिर में स्थित शिवलिंग की स्थापना किसने की इसके बारे में भी कोई नहीं जानता. महादेव की सेवा के लिए स्थानीय लोगों ने एक समिति का निर्माण किया है. जो समयानुसार अलग-अलग आयोजन करती रहती है. वहीं शिवरात्रि के दौरान यहां तीन दिवसीय मेले का भी आयोजन होता है. सावन में कांवरियों के लिए निशुल्क सेवा कैम्प भी लगता है. समिति स्वंम के खर्चे पर इन कार्यक्रमों का आयोजन करती है.
- वहीं छत्तीसगढ शासन इस स्थल के विकास के लिए मौन है. भुतेश्वरधाम अपने पंहुच मार्ग तक के लिए तरस रहा है. स्थानीय लोग इस बात को कई बार छत्तीसगढ़ शासन तक इस बात को पहुंचाने की कोशिश कर चुके हैं, लेकिन अभी तक नाकामी ही हासिल हुई है.

Trending news