कांग्रेस की तरफ से राहुल की जगह सचिन पायलट हो सकते हैं PM उम्‍मीदवार?
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कांग्रेस की तरफ से राहुल की जगह सचिन पायलट हो सकते हैं PM उम्‍मीदवार?

राजनीतिक विश्‍लेषक यह भी मान रहे हैं कि हिंदी पट्टी के राज्‍यों से बीजेपी को मोटेतौर पर 60 सीटों का नुकसान हो सकता है. यानी इस सूरतेहाल में बीजेपी को स्‍पष्‍ट बहुमत नहीं मिलेगा.

सचिन पायलट(39) कांग्रेस अध्‍यक्ष राहुल गांधी(47) की तुलना में युवा चेहरा हैं.(फाइल फोटो)

गुजरात चुनाव और राजस्‍थान उपचुनाव के नतीजे राजनीतिक विश्‍लेषकों के मुताबिक कांग्रेस के लिए संजीवनी की तरह हैं. इनके बाद इस बात की चर्चा शुरू हो गई है कि क्‍या 2019 के चुनावों में कांग्रेस सत्‍ता में वापस लौट सकती है? वैसे एक साल पहले तक यह माना जा रहा था कि पीएम मोदी के करिश्‍माई नेतृत्‍व में बीजेपी आसानी से सत्‍ता में लौट आएगी. लेकिन गुजरात के नतीजों ने इस बात के स्‍पष्‍ट संकेत दिए हैं कि 2019 की राह बीजेपी के लिए बहुत आसान नहीं होने जा रही है. इसके पीछे एक बड़ा कारण यह है कि पिछली बार बीजेपी ने यूपी, गुजरात, राजस्‍थान, मध्‍य प्रदेश, छत्‍तीसगढ़, बिहार जैसे राज्‍यों की अधिकाधिक सीटें हासिल कर दिल्‍ली की गद्दी को हासिल करने में कामयाबी पाई थी. लेकिन इस साल के अंत तक हिंदी पट्टी के राजस्‍थान, मध्‍य प्रदेश, छत्‍तीसगढ़ जैसे बीजेपी शासित राज्‍यों में चुनाव होने जा रहे हैं. राजस्‍थान उपचुनाव के नतीजों ने साबित कर दिया है कि इस बार इन राज्‍यों में बीजेपी की राह आसान नहीं होगी. इनके तत्‍काल बाद लोकसभा चुनाव होंगे, लिहाजा यदि इन विधानसभा चुनावों में बीजेपी को अपेक्षित नतीजे नहीं मिले तो इसका सीधा फायदा कांग्रेस को मिलेगा.

राजनीतिक विश्‍लेषक यह भी मान रहे हैं कि हिंदी पट्टी के राज्‍यों से बीजेपी को मोटेतौर पर 60 सीटों का नुकसान हो सकता है. यानी इस सूरतेहाल में बीजेपी को स्‍पष्‍ट बहुमत नहीं मिलेगा. इसका सीधा फायदा कांग्रेस को होगा और केंद्र में वह फिर से एक बड़ी ताकत बनकर उभरेगी. मतलब यह हुआ कि कांग्रेस यदि मौजूदा 44 सीटों से आगे बढ़कर तीन अंकों तक पहुंचती है तो बीजेपी की सत्‍ता में वापसी की राह में 'रेड सिग्‍नल' देखने को मिलेगा.

अब यहीं से बड़ा सवाल उठता है कि क्‍या कांग्रेस बदलती सियासी परिस्थितियों का लाभ उठाने के लिए तैयार है? आखिर कांग्रेस को क्‍या करना होगा जिससे कि वह बीजेपी की कीमत पर वोटों को अपनी तरफ आकर्षित करने में कामयाब हो जाए? दैनिक भास्‍कर में छपे अपने लेख में अंग्रेजी के युवा उपन्‍यासकार और स्‍तंभकार चेतन भगत ने इन विषयों पर अपने विचार पेश किए हैं. उन्‍होंने अपने आर्टिकल में कहा है कि भले ही राहुल गांधी कांग्रेस के अध्‍यक्ष बन गए हैं लेकिन यदि युवा नेता सचिन पायलट को पार्टी का प्रधानमंत्री पद का उम्‍मीदवार घोषित कर दिया जाए तो वह सर्वश्रेष्‍ठ विकल्‍प हो सकते हैं.

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स्विंग वोटर का मूड
चेतन भगत के मुताबिक यह सही है कि राहुल गांधी पार्टी के निर्विवाद नेता हैं लेकिन निष्‍पक्ष मतदाताओं में उनके नाम को लेकर बहुत आपत्तियां हैं. चुनाव में इस तरह के वोटरों की संख्‍या तकरीबन पांच फीसद होती है. ये स्विंग वोटर इधर या उधर झुकने की वजह से किसी को भी झटका दे सकते हैं.पहली बार वोट देने वालों या किसी दल के बारे में स्‍पष्‍ट राय नहीं रखने वाले नए वोटर दसियों लाख हैं. दरअसल ऐसे वोटर ही खेवनहार होते हैं. ये अतिरिक्‍त वोट ही सत्‍ता तक पहुंचाने में मददगार होते हैं. बीजेपी ने इसी वजह से 2014 में तमाम विरोधों के बावजूद नरेंद्र मोदी को पीएम पद का प्रत्‍याशी बनाया क्‍योंकि वो ही इस वोटर को खींचने में सक्षम थे? इस लिहाज से ऐसे वोटरों को साधने के लिए कांग्रेस को तत्‍काल प्रधानमंत्री पद के उम्‍मीदवार की घोषणा कर देनी चाहिए और इसके लिए सर्वश्रेष्‍ठ विकल्‍प सचिन पायलट हैं. इसके साथ ही पार्टी को तत्‍काल चुनावी मोड में आ जाना चाहिए. 

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युवा और जनाधार वाले नेता
राहुल गांधी(47) की तुलना में सचिन पायलट(39) युवा नेता हैं. राजस्‍थान कांग्रेस के प्रदेश अध्‍यक्ष हैं और इस प्रदेश में उनका जनाधार है. चेतन भगत के मुताबिक उनके लहजे में राहुल गांधी की तुलना में स्‍वाभाविकता है. इस कारण आम लोगों से वह राहुल की तुलना में सहज ढंग से जुड़ पाते हैं. वह पार्टी की तरफ से 'फ्रेश' फेस होंगे. इस तरह का फ्रेश चेहरा मीडिया, सोशल मीडिया और युवा वोटरों में अपील देता है. इन सबके बीच यदि कांग्रेस सचिन के नेतृत्‍व में राजस्‍थान में जीत जाती है तो यह उनके पक्ष में सबसे बड़ी बात होगी. इसके साथ ही यदि कांग्रेस अध्‍यक्ष राहुल गांधी प्रधानमंत्री पद के प्रत्‍याशी के रूप में सचिन पायलट का समर्थन करते हैं तो उनका कद भी स्‍वाभाविक ढंग से बढ़ेगा. इस तरह राहुल और सचिन की जोड़ी कमाल कर सकती है.

विजन डॉक्‍यूमेंट
चेतन भगत के मुताबिक कांग्रेस को अपना वैकल्पिक मॉडल पेश करना होगा. केवल बीजेपी की आलोचना करने से काम नहीं चलेगा. सुस्‍त अर्थव्‍यवस्‍था और रोजगार पैदा नहीं कर पाने की मौजूदा सरकार की कमजोरियों पर प्रहार करना ठीक है लेकिन साथ ही यह भी बताना होगा कि इकोनॉमी को सुधारने के लिए वह क्‍या करेंगे? रोजगार पैदा करने के लिए उनके पास क्‍या प्‍लान हैं? क्‍या वे जनप्रतिनिधियों द्वारा सांप्रदायिक बयान देने को अपराध घोषित करेंगे? क्‍या करप्‍शन को रोकने के लिए आरटीआई जैसे नए 'गेमचेंजर' प्‍लान उनके पास हैं?

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हिंदू विरोधी नहीं
कांग्रेस की परंपरागत छवि ऐसी हो गई थी कि वह अल्‍पसंख्‍यक वोटों की खातिर हिंदू भावनाओं की अनदेखी कर देती थी. ऐसे में कांग्रेस को ऐसा प्रयास करना चाहिए कि वह हिंदू विरोधी नजर नहीं आए. कांग्रेस को आधुनिक हिंदुत्‍व का हल्‍का संस्‍करण लाना होगा जो कट्टरवादी नहीं दिखे. इस वजह से परंपरावादियों को संतुष्‍ट करने के साथ नई पीढ़ी की आकांक्षाओं को तुष्‍ट करे.

गठबंधन का गणित
कांग्रेस अपने दम पर कमाल करने की स्थिति में नहीं है. इसको अपने साथ सहयोगियों की दरकार है. इसलिए उसे नए गठबंधन बनाने होंगे लेकिन इनमें शर्त यह होनी चाहिए कि ऐसे सहयोगियों की तरफ से किसी भी प्रकार के घोटाला नहीं होने की गांरटी हो. साथ ही इन सहयोगियों के साथ सीटों का सही समीकरण करना होगा. बिहार में इस तरह का समीकरण कांग्रेस के लिए अनुकूल रहा.

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