Mathura: क्या है गोवर्धन पूजा का महत्व, जानिए कृष्ण को क्यों कहते हैं 'गिरिराज धरण'
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Mathura: क्या है गोवर्धन पूजा का महत्व, जानिए कृष्ण को क्यों कहते हैं 'गिरिराज धरण'

Govardhan Puja 2022: जानिए कृष्ण को 'गिरिराज धरण' क्यों कहते हैं. इसके अलावी क्या है गोवर्धन पूजा का महत्व...

Mathura: क्या है गोवर्धन पूजा का महत्व, जानिए कृष्ण को क्यों कहते हैं 'गिरिराज धरण'

मथुरा: हर साल दिवाली के दूसरे दिन गोवर्धन पूजा पूरी देश भर में मनाई जाती है, लेकिन क्या आपको पता है कि गोवर्धन पूजा क्यों मनाई जाती है. इसकी शुरुआत कहां से हुई? क्या आप जानते हैं कृष्ण को गिरिराज धरण' क्यों कहा जाता है. गोवर्धन से जुड़ी ये लाइन काफी अहम है- ''गिरिराज धरण हम तेरी शरण, रख लाज हमारी गोवर्धन''. श्री कृष्ण की जन्म स्थली मथुरा, यहां पूरे ब्रज के 84 कोस में कृष्ण ने अनेक लीलाएं की हैं. ये सभी लीलाएं भगवान ने बाल्य काल में की हैं. जब श्री कृष्ण किशोरावस्था में थे, इसलिये भी ब्रज को स्वर्ग का हिस्सा माना जाता है. इसलिए इसे वृंदावन धाम कहा जाता है. भगवान कृष्ण की इन लीलाओं में एक लीला गोवर्धन की भी है.

एक बार जब बाल्यकाल में नटखट कान्हा ग्वाल बालों के साथ खेलकर घर आए. तब माता यशोदा उनके लिए पकवान बना रही थीं. कान्हा ने माता से पूछा- ''मां कई तरह के पकवान और व्यंजन किसके लिए तैयार कर रही हो, मुझे भी खाना हैं". इस पर यशोदा ने कहा- ना लल्ला ये पकवान स्वर्ग के देवता इंद्र के लिए हैं, पहले उन्हें भोग लगाया जायेगा, बाद में सभी लोग खाएंगे नही तो इंद्रदेव नाराज हो जाएंगे और बारिश नहीं करेंगे, जिससे सभी जमीन बंजर हो जायेगी और सभी लोग अनाज को तरस जाएंगे, तब 7 साल के कान्हा ने अपनी मां यशोदा से कहा कि मां क्या आपने कभी इंद्र देवता को देखा है, इस पर मां ने कहा कि देखा तो नहीं है, लेकिन उनकी वजह से ही ब्रज में वर्षा होती है और सभी ओर हरियाली रहती है.

आगे मां यशोदा ने कहा कि इसलिए सभी ब्रजवासी अपने-अपने घरों में पकवान बना रहे हैं. कान्हा ने इस बात पर कहा मां इस बार आप मेरे भगवान की पूजा करो जो आपको दिखाई भी देगा और आप से मांग- मांगकर खायेगा. कन्हैया ने अपनी यह बात नन्द बाबा और सभी ब्रज वासियों के सामने रखी, जिस पर सभी ने कहा कि कई वर्षों से हम इंद्र की पूजा करते आ रहे हैं, इस बार कृष्ण के देवता की पूजा करेंगे. जिससे वह खुश हो जाएंगे और अधिक वर्षा करेंगे. कृष्ण सभी ब्रजवासियों को लेकर गिरिराज पर्वत के सामने खड़े हो गए. ब्रजबसियों ने कहा की कान्हा कहां है तुम्हारे देवता कान्हा ने आवाज लगाई गोवर्धन नाथ सभी ब्रजवासी आपको भोग लगाने कब लिए पकवान और व्यंजन लाय हैं, तभी गिरिराज पर्वत में से श्रीगोवर्धन नाथ जी के रूप में देवता ने सभी को दर्शन दिए और सभी ब्रजवासियों से मांग मांग कर खाया.

कृष्ण एक रूप से खिला रहे थे और एक रूप से खा रहे थे, अपने हाथों से गोवर्धन महाराज को भोग लगाकर सभी ब्रजवासी  खुश हो गए, लेकिन जब यह बात इंद्र देव को पता लगी तो वह नाराज हो गए. इंद्र ने कहा कि एक 7 साल के बालक के कहने पर ब्रजवासियों ने मेरी पूजा न करके एक पर्वत को पूज दिया, मैं पूरे ब्रज को पानी पानीकर दूंगा.क्रोधित इंद्र ने ब्रज में मूसलाधार बारिश शुरू कर दी, जिससे डरे-सहमे ब्रज वासी कान्हा के पास गए और कान्हा से कहा कि अब तुम ही हमारी रक्षा करो हमने तुम्हारे कहने पर इंद्र की पूजा नहीं की. कृष्ण ने कहा कि चलो फिर सभी गोवर्धन पर्वत ही चलते हे, सभी ब्रज बाशी गोवर्धन पर्वत पहुंचे, जहां मूसलाधार बारिश से डरे ब्रजवासियों को देख कन्हैया ने गोवर्धन पर्वत को अपनी तर्जनी उंगली पर उठा लिया और सभी ब्रजवासियों को पर्वत के नीचे बुला लिया.

गुस्साए इंद्र ने ब्रज में 7 दिन और 7 रात मूसलाधार बारिश की और आप इसे संयोग मानेगे बालक कृष्ण की उम्र भी महज 7 वर्ष ही थी,जब इंद्र के पास जल समाप्त हो गया तो इंद्र ने सोचा की ब्रज तो खत्म हो गया होगा उसे देखा जाये, जब इंद्र ब्रज भूमि पर आया तो यहां धूल मिट्टी उड़ रही थी और कृष्ण 21किलोमीटर में फैले विशाल गिरिराज पर्वत को उंगली पर उठाये हुए थे. इस नजारे को देख इंद्र श्री कृष्ण के पैरों में गिर गया और कृष्ण को ऐरावत हाथी और कई वस्तुएं भेंट की, लेकिन कृष्ण नही माने.फिर इंद्र ने नारद जी की सलाह पर सुरभि गाय भेंट की और क्षमा मांगी. इसी कारण द्वापर युग से यह परंपरा चली आ रही है और ख़ास तौर पर ब्रज यानी की गोवर्धन में इसे विशेष तौर पर मनाया जाता है.

गोवर्धन पर्वत पर कृष्ण की सभी लीलाएं विद्धमान है, साथ ही कृष्ण के बड़े भाई ने पर्वत पर सिंह रूप धर माहरास के दर्शन किये थे. कृष्ण को कई नामों से जाना जाता है, कोई उसे कान्हा कहता है, कोई गिरधारी, रास बिहारी, गिरिराज धरण अनेकों रूप और अनेकों नामों से कृष्ण की पूजा होती है. कहा जाता है कि जब कृष्ण ने 21 किलोमीटर में फैले विशाल गिरिराज पर्वत को अपनी उंगली पर उठाया था, तब गिरिराज पर्वत ने अपना भार कम कर लिया था और माखन की तरह मुलायम हो गया, जब कृष्ण ने पर्वत पर अपने पैर रखे और लीलाएं की, वो भी पर्वत पर छप गईं. आपको दिखाते हैं उनके पैर और गाय के पैरों के साथ बलदाऊ का वह मंदिर जहां से बलदाऊ ने शेर का रूप रख कृष्ण के महारास के दर्शन किए.

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