हिंदू-मुस्लिम एकता की पेश कर रहे मिसाल, पूजा में काम करा रहे दोनों समुदाय के लोग
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हिंदू-मुस्लिम एकता की पेश कर रहे मिसाल, पूजा में काम करा रहे दोनों समुदाय के लोग

पश्चिम बंगाल के मॉनिपुर इलाके में काली पूजा का आयोजन हो रहा है. इसमें हिंदू मुस्लिम बराबरी का साथ दे रहे हैं और पूजा की तैयारियां करा रहे हैं.

 

हिंदू-मुस्लिम एकता की पेश कर रहे मिसाल, पूजा में काम करा रहे दोनों समुदाय के लोग

पश्चिम बंगाल में बड़े पैमाने पर काली पूजा का आयोजन किया जाता है. इस बार कई मुस्लिम इलाकों में भी काली पूजा मनाई जा रही है. काली पूजा के त्योहार को मनाने के लिए मुस्लिम भी हिंदुओं का साथ दे रहे हैं. मुस्लिम भोग बनाने में हिंदू भाइयों का साथ दे रहे हैं. इस तरह से दोनों समुदाय हिंदू मुस्लिम एकता और भाईचारे का पैगाम दे रहे हैं. 

टाइम्स ऑफ इंडिया ने लिखा है कि पश्चिम बंगाल के मॉनिनपुर के गोधुली क्लब में कई मुस्लिम समुदाय के लोग पूजा की तैयारियों के लिए काम कर रहे हैं और पंडितों से बात कर रहे हैं. इनके साथ हिंदू साथी भी बराबर सहयोग दे रहे हैं. गोधुली क्लब साल 1954 से पूजा का आयोजन करता आ रहा है. एक मकामी शख्स शरजुल करीम का कहना है कि "69 सालों से हम इस पूजा को एक साथ आर्गनाइज करते आ रहे हैं." पूजा में 108 बेल के पत्तों की जरूरत होती है. इसके लिए मुस्लिम नौजवान रात को बाहर जाते हैं और हिंदू परिवारों के यहां से पत्तियां लाते हैं. ये पत्तियां देवी को चढ़ाई जाती हैं. 

क्लब के सीनियर मेंबर सेन का कहना है कि इस क्लब का मकसद है कि वह सभी समुदाय से लोगों को इकट्ठा करें. "यहां पूजा में शामिल होने के लिए धर्म बाधा नहीं बनता. हमारी तरफ से ये बहुत छोटी सी कोशिश है. इससे हम नाकारात्मकता को दूर भगाएंगे और प्यार और एकता का पैगाम देंगे."

पिछले 40 सालों में किड्डरपुर से कई हिंदू परिवार पलायन कर गए थे. उसके बाद से यहां के मुस्लमानों ने पूजा कराने का जिम्मा ले लिया है. मॉनीपुर स्पोर्टिंग क्लब के सेक्रेटरी मोहम्मद आलम का कहना है कि "80 के दशक में यहां के हिंदू दूसरी जगहों पर जाने लगे थे. इसके बाद यहां पूजा बंद होने वाली थी." उन्होंने आगे कहा कि "इसके बाद कुछ मुस्लिम लोगों ने यहां रह रहे हिंदू लोगों की मदद की और पूजा का आयोजन फिर से शुरू कराया. दोबारा पूजा शुरू कराने के लिए हम दोनों समुदायों का आभार वयक्त करते हैं."

क्लाब के सीनियर मेंबर आजिम का कहना है कि हम दोनों समुदायों के मेंबर मिलकर कई दूसरे प्रोग्राम का आयोजन कराते हैं. चाहे वह पूजा का आयोजन हो या फिर ईद और ईद-ए-मिलाद हो. 

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