Mahashivratri 2023: फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि इस बार 18 फरवरी या कि आज ही मनाई जा रही है. इस दिन भगवान शिव का विवाह मां पार्वती के साथ हुआ था. इसलिए देशभर में इस दिन को बहु धूमधाम के साथ मनाया जाता है. इस दिन शिव भक्त पूजा अर्चना करते हैं और व्रत आदि रखकर भगवान की उपासना करते हैं. हिंदू धर्म में महाशिवरात्रि का विशेष महत्व बताया जाता है. इतना ही नहीं, इस दिन महादेव का आशीर्वाद पाने के लिए रुद्राभिषेक भी किया जाता है. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार अगर आप भी महाशिवरात्रि का व्रत रख रहे हैं, तो पूजा के समय इस व्रत कथा को अवश्य पढ़ें.


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महाशिवरात्रि व्रत कथा


शिव पुराण में महाशिवरात्रि की कथा का वर्णन किया गया है. प्राचीन काल में चित्रभानु नाम का एक शिकारी रहता था. वे अपने परिवार को पालने  के लिए जानवरों की हत्या करता था. उसने एक साहूकार से कर्ज लिया हुआ था, लेकिन उसका ऋण समय पर नहीं चुका सका था. ऐसे में साहूकार ने क्रोधित होकर शिकारी को शिवमठ में बंदी बना दिया. संयोगवश उस दिन शिवरात्रि का दिन था. इस दिन साहूकार के घर में पूजा हो रही थी. शिकार बड़े ही ध्यान के साथ ये धार्मिक बातें सुनता रहा. इतना ही नहीं, इस दिन उसने शिवरात्रि व्रत कथा भी सुनी.


शाम को शिकारी ने साहूकार से अगले दिन सारा ऋण चुकाने का वजन दिया और वहां से जंगल में शिकार के लिए निकल गया. लेकिन दिनभर बंदी गृह में रहने के कारण उसे बहुत तेज भूख-प्यास लगी थी. शिकार की तलाश में वह बहुत दूर तक चला गया. जगंल में रात हो जाने के कारण,वे वहीं रुक गया. एक बेल के पेड़ के ऊपर चढ़ कर रा बितने का इंतजार करने लगा.    
 
जिस पेड़ के ऊपर वे बैठा उस पेड़ के नीचे शिवलिंग था, जो कि बिल्व पत्र से पूरी तरह से ढका हुआ था. शिकारी ने पेड़ पर पड़ाव बनाते समय जो टहनियां तोड़ीं वे शिवलिंग पर गिरती चली गईं. इस प्रकार भूखे-प्यासे रहकर शिकारी का शिवरात्रि का व्रत हो गया और शिवलिंग पर अनजाने में ही सही बिल्व पत्र भी चढ़ गए. रात का एक पहर बीत चुका था. इस दौरान तवाब पर एक गर्भिणी हिरणी पानी पीने आई.  शिकारी मे जैसे ही उस पर तीर चलाना चाहा, वैसे ही हिरणी ने कहा कि मैं गर्भिणी हूं और शीघ्र ही प्रसव करूंगी. ऐसे में तुम दो जीवों को हत्या एक साथ करोगे, ये ठीक नहीं. मैं बच्चे को जन्म देकर शीघ्र ही तुम्हारे पास आ जाऊंगी, तुम तब मार लेना.


इस दौरान फिर से अनायास ही शिकारी से कुछ बिल्व पत्र शिवलिंग पर गिर गए. इस दौरान प्रथम पहर का पूजन भी शिकारी से संपन्न हो गया. थोड़ी देर के बाद एक और हिरमी वहां से निकली. हिरणी को देखकर शिकारी बहुत खुश हुआ. लेकिन वो हिरणी भी उसे बातों में उलझा कर निकल गई. दो बार शिकार के निकल जानें से शिकार चिंता में पड़ गया. रात का आखिरी पहर भी निकलने को था और शिकारी के धनुष से उस समय भी कुछ बिल्व पत्र शिवलिंग पर गिर गए. ऐसे में दूसरे पहर की पूजा भी संपन्न हुई.  


इसी तरह इसके बाद एक और हिरणी और उसके बच्चे वहां से गुजरे, लेकिन हिरणी की प्रार्थना पर शिकारी ने उसे भी जाने दिया. बिल्व के पेड़ पर बैठा शिकारी अनजाने में ही शिवलिंग पर पत्ते गिराए जा रहा था. पौ फटने को हुई. इस दौरान एक हृष्ट-पुष्ट मृग वहां से गुजर रहा था. शिकारी ने सोचा इसका शिकार वो जरूर करेगा. लेकिन मृग की बातों में आकर शिकारी के सामने पूरी रात का घटनाचक्र घूमने लगा. उसने मृग को सारी कथा सुनाई. मृग की बातों में आकर शिकारी ने उसे भी जाने दिया.


इस प्रकार पूरा रात बीत गई. उपवास, रात्रि-जागरण तथा शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ने से अनजाने में ही पर शिवरात्रि की पूजा पूर्ण हुई और व्रत पूरा हो गया. अनजाने में की गई इस पूजा का परिणाम उसे जल्द मिल गया. इस दौरान शिकारी का हृदय निर्मल हो गया.


अनजाने में शिवरात्रि के व्रत का पालन करने पर शिकारी को मोक्ष की प्राप्ति हुई. शिव पुराण के अनुसार मृत्यु काल में यमदूत जब उसे ले जाने आए तो शिवगणों ने उन्हें वापस भेज दिया और शिकारी को शिवलोक ले गए. भगवान शिव की कृपा से राजा चित्रभानु इस जन्म में अपने पिछले जन्म को याद रख पाए. इतना ही नहीं, महाशिवरात्रि के महत्व को जान कर उसका अगले जन्म में भी पालन कर पाए.


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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)