Navratri Brothel Soil: दुर्गा पूजा के लिए पंडाल सजने लगे हैं. शहर के मुख्य केंद्रों पर दुर्गा पूजा के पंडाल अब दिखने लगे हैं. नवरात्रि की तैयारियों पूरे देश में एक माह पहले से ही शुरू हो जाती है. इन पंडालों में सभी के आकर्षण का केंद्र मां दुर्गा की भव्य प्रतिमाएं ही होती हैं. पंडालों में दस भुजाओं वाली देवी को देखने के लिए हर साल लाखों की संख्या में भक्तों की भीड़ उमड़ती है. लेकिन कम ही लोग जानते हैं कि दुर्गा मां की प्रतिमा तैयार के लिए क्या-क्या सामग्रियां कहां-कहां से जुटाई जाती हैं. आइये आपको बताते हैं मां दुर्गा की प्रतिमा से जुड़ी हैरान करने वाली बातों के बारे में..


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दुर्गा पूजा भारत में सबसे ज्यादा धूम-धाम से पश्चिम बंगाल में वो भी खासकर कोलकाता में मनाई जाती है. महीनों पहले कोलकाता में कुमारटुली की संकरी गलियां और उपनगरियां उत्सव के लिए मिट्टी से दस भुजाओं वाली देवी और उनके परिवार को आकार देने वाले कारीगरों और मूर्ति निर्माताओं से जीवंत हो उठती हैं.


मां दुर्गा की प्रतिमा तैयार करने वाले चिन्मयी या मिट्टी की मूर्तियां तैयार करते हैं. इन प्रतिमाओं को नवरात्रि में पुजारी की अनुष्ठान प्रथाओं के बाद पंडालों में स्थापित किया जाता है. बता दें कि हुगली नदी की मिट्टी को मूर्तियों को आकार देने के लिए आदर्श माना जाता है. लेकिन ये कम ही लोग जानते हैं कि नदी का किनारा एकमात्र स्थान नहीं है जहां से मिट्टी का उपयोग देवी दुर्गा की मूर्तियां बनाने में किया जाता है.


हिंदू परंपरा के अनुसार जब देवी दुर्गा की मूर्ति तैयार की जाती है तो चार चीजें बहुत महत्वपूर्ण होती हैं. इनमें गंगा के किनारे की मिट्टी, गाय का गोबर, गोमूत्र और वेश्यालयों की मिट्टी शामिल है. इनमें से किसी एक भी चीज के बिना मूर्ति को अधूरा माना जाता है.


पारंपरिक मान्यताओं के अनुसार मिट्टी को किसी यौनकर्मी के हाथ से भीख मांगकर उपहार और आशीर्वाद के रूप में प्राप्त करना चाहिए क्योंकि इसे 'पुण्य माटी' या पवित्र मिट्टी के रूप में जाना जाता है. पहले इसे पुजारी द्वारा एकत्र किया जाता था. आजकल इसे उत्सव से महीनों पहले मूर्ति बनाने वाले व्यक्ति द्वारा एकत्र किया जाता है. बहुत से लोग मानते हैं कि मिट्टी को धन्य माना जाता है क्योंकि जो लोग वेश्याओं की निषिद्ध गलियों में जाते हैं वे अपने गुण और धर्मपरायणता को दरवाजे पर ही छोड़ कर कामुक इच्छाओं और पाप की दुनिया में प्रवेश करते हैं. तब मिट्टी सभी गुणों को आत्मसात कर लेती है और धन्य हो जाती है.


एक और मान्यता है कि दुर्गा पूजा के दौरान नवकन्या के रूप में जानी जाने वाली महिलाओं की नौ श्रेणियों की पूजा की जाती है. एक नटी (नर्तक/अभिनेत्री), एक वैश्या (वेश्या), राजकी (धोने वाली लड़की), एक ब्राह्मणी (ब्राह्मण लड़की), एक शूद्र, एक गोपाला (दूधवाली): ऐसी महिलाओं को नवकन्या के नाम से जाना जाता है. मान्यता के अनुसार इन महिलाओं को सम्मान दिए बिना दस भुजाओं वाली देवी की पूजा अधूरी है.