Kusha Importance: हिंदू धर्म में पितृपक्ष को बहुत महत्व देते हैं. कहते हैं इन 16 दिनों के लिए हमारे पूर्वज धरती पर आते हैं औऱ भ्रमण करते हैं. इन दिनों पितरों को खुश करने के लिए पूरी श्रद्धा-भक्ति से पूजा की जाती है. तिथि के अनुसार पितरों का तर्पण किया जाता है. पितृपक्ष में तर्पण करने से पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है जिससे घर में सुख-शांति, समृद्धि आती हैं. इसके साथ ही पितृदोष से भी छुटकारा मिलता है. पितृपक्ष में बहुत से लोग श्राद्ध, पिंडदान करते हैं. इस दौरान कुश का उपयोग करना बहुत जरूरी माना जाता है. कहते हैं इसके बिना श्राद्ध कर्म अधूरा होता है. आइए जानते हैं कुछ बिना श्राद्ध कर्म अधूरा क्यों होता है और कुछ को किस उंगली में धारण करना चाहिए


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जानें क्या हैं इसका महत्व


कुशा एक पवित्र घास हैं जिससे नकारात्मकता दूर होती है. कहते हैं कि इसमें ब्रह्मा, विष्णु और महेश का वास होता है. इसकी पवित्रता के चलते श्राद्धकर्म में इसका प्रयोग होता है. इसका प्रयोग करने से मतलब है कि हमने पूरी पवित्रता से श्राद्ध किया हैं.



वहीं महाभारत की कथा के अनुसार जब गरुड़ भगवान स्वर्ग से अमृत कलश लेकर आ रहे थे तो वे थक गए और कलश को नीचे नहीं रखने के बजाय उन्होंने वह कलश थोड़ी देर के लिए कुश पर रख दिया जिससे वह पवित्र हो गई.


इसके अलावा मत्स्य पुराण में कहा जाता है कि एक बार जब भगवान विष्णु ने वराह अवतार लेकर हिरण्याक्ष का वध किया और धरती बनाई तब उन्होंने अपने शरीर पर से पानी को झाड़ा इस दौरान उनके शरीर से बाल धरती पर गिरे और कुशा के रूप में बदल गए.


किस उंगली में पहनते हैं कुशा



कुशा की अंगूठी बनाकर तीसरी उंगली यानी अनामिका उंगली में पहनी जाती है जिसे पवित्री के नाम से भी जाना जाता है. धर्म ग्रंथों के अनुसार इसके उपयोग से मानसिक और शारीरिक दोनों तरह से पवित्रता हो जाती है इसलिए इसे पूजा-पाठ में हर जगह उपयोग किया जाता है. श्राद्ध के अलावा पूजा-पाठ में भी इसका उपयोग होता है. पूजा-पाठ के दौरान जगह पवित्र करने के लिए भी कुशा से जल छिड़का जाता है.
 
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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)