Surya Dev: हर महीने अलग रूप में उदित होते हैं सूर्य देव, इस तरह करते हैं हर मनोकामना पूरी
Surya Bhagwan: आषाढ़ मास में तपने वाले सूर्य की उपासना करने से पुत्ररत्न की प्राप्ति होती है. ऐसे ही भगवान भास्कर हर महीने अलग रूप में उदित होते हैं. भगवान सूर्य का रूप, गुण, स्वभाव और रंग विभिन्न राशियों में प्रवेश करने के साथ ही बदल जाता है.
Lord Surya Dev: सूर्य देव पूरे वर्ष में विभिन्न राशियों में विचरण करते रहते हैं. इस तरह वह प्रत्येक राशि में एक माह तक प्रवास करने के बाद वहां से निकलकर दूसरी राशि में प्रवेश करते हैं. राशियों में जाते ही उनका स्वरूप और गुण भी बदल जाता है. चैत्र से भाद्रपद मास तक उनके बदलते रूप के बारे में जानिए.
धाता- चैत्र मास में उदित होने वाले सूर्य को धाता के नाम से जाना जाता है. यह प्रजापति के रूप में संपूर्ण जगत की सृष्टि करते हैं. ब्रह्मा के रूप में सृष्टि रचते हैं तो विष्णु के रूप में पालन करते हैं और शिव के रूप में संहार करते हैं. इनका रक्त वर्ण है.
अर्यमा- बैशाख मास के उदित सूर्य अर्यमा कहलाते हैं. इनका वर्ण पीत होता है और यह सूर्य देव के छठे अवतार माने जाते हैं. वायु रूप में यह चराचर जगत में प्राणियों को प्राणवायु प्रदान करते हैं. यज्ञ में यह मित्र और वरुण के साथ स्वाहा और स्वाधा का दिया हव्य और कव्य दोनों स्वीकार करते हैं.
मित्र- ज्येष्ठ मास के उदित सूर्य को मित्र के रूप में जाना जाता है. उनका अरुण वर्ण होता है. मित्र भगवान सूर्य के 12वें अवतार हैं. समस्त ब्रह्मांडों के हित के लिए चंद्रभागा नदी के तट पर कठोर तपस्या करने के कारण इनका नाम मित्र के रूप में प्रसिद्ध हुआ. इनकी उपासना करने से पर मिलने वाली कृपा से कुष्ठ रोग दूर होता है.
वरुण- सूर्य देव की 11वीं लीला मूर्ति का नाम वरुण है. आषाढ़ मास में तपने वाले सूर्य को अरुण भी कहा जाता है, जिनका वर्ण श्याम है. यह जल में रहकर प्रजा का पोषण करते हैं. इनकी उपासना करने से पुत्र की प्राप्ति होती है.
इंद्र- श्रावण मास के अधिपति सूर्य का नाम इंद्र है, जिनका वर्ण श्वेत है. भगवान सूर्य की प्रथम लीला विग्रह इंद्र के नाम से प्रसिद्ध है. यह देवराज के पद पर आसीन हैं, जो देवताओं के रक्षक हैं. भगवान धन्वंतरि ने इन्हीं की कृपा से आयुर्वेद का ज्ञान प्राप्त किया था.
विवस्वान- भाद्रपद मास में तपने वाले सूर्य भगवान का आठवां रूप हैं, जिनका नाम विवस्वान है. अग्नि में जो तप या ऊष्मा है, वह विवस्वान स्वरूप है. प्राणियों में जठराग्नि के रूप में अन्न का पाचन करते हैं, इन्हीं की कृपा से बुद्धि और यश प्राप्त होता है.