Free Vastu Tips for Home: वास्तु शास्त्र एक प्राचीन भारतीय ज्ञान है, जिसके नियमों का पालन आदिकाल से भवनों के निर्माण कार्य में होता आ रहा है, फिर वह निर्माण घर का हो या  स्कूल, कार्यालय, मंदिर अथवा अन्य किसी भी प्रकार का. वास्तुकला भारत ही नहीं पूरे विश्व में व्याप्त है और इसका उद्देश्य मानव जीवन को सुखद और समृद्धिशाली बनाना है. वास्तु शास्त्र के नियमों का मुख्य उद्देश्य घर के अंदर एनर्जी का बैलेंस बनाए रखना है, ताकि निगेटिव एनर्जी बाहर जाती रहे और पॉजिटिव एनर्जी का प्रवेश घर में बढ़े. एनर्जी बैलेंस ही हमारे जीवन में सुख, समृद्धि और शांति लाती है.


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वास्तु शास्त्र के मुख्य तत्व पंच महाभूत यानी पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि और आकाश हैं. इनके साथ ही और दिशाओं का भी वास्तु में बहुत महत्व है. यह पांच महाभूत का संतुलन मानव स्वास्थ्य और समृद्धि के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है. 


वास्तु के नियम


ईशान दिशा- इसका मतलब है कि घर या इमारत का प्रमुख द्वार या फिर प्रवेश द्वार उत्तर-पूर्व यानी की ईशान दिशा में होना चाहिए, जिससे सूर्य की प्राथमिक किरणें घर में प्रवेश कर सके. 


ब्रह्म स्थल- ब्रह्मस्थल को घर का केंद्रीय भाग माना जाता है और इसे खाली रखा जाता है. जिस प्रकार शरीर में नाभि महत्वपूर्ण एवं मर्म स्थान होता है, उसी प्रकार भूखंड का मध्य का स्थान नाभि के समकक्ष माना गया है. इसके खुला रहने से पौष्टिकता और ऊर्जा का संचार होता है. 


बेडरूम- वास्तु शास्त्र के अनुसार, घर का मुख्य बेडरूम दक्षिण में होना चाहिए. जबकि, बच्चों  और नवविवाहिता का कमरा उत्तर-पश्चिम में हो सकता है.  


पूजा कक्ष- पूजा कक्ष को ईशान कोण  दिशा में बनाया जाना चाहिए, जो ईशान कोण के रूप में जाना जाता है. 


रसोई- अग्नि का तत्व खाना पकाने और खाद्य सामग्री की प्रोसेसिंग करने के लिए जरूरी होता है, इसलिए आग्नेय (दक्षिण-पूर्व) अग्नि तत्व युक्त होती है. अतःआग्नेय  दिशा  किचन के लिए सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है.


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