नई दिल्ली: सकट चौथ (संकष्टी चतुर्थी 2019) का पर्व इस बार 24 जनवरी को है. सकट पर भगवान गणेश की पूजा की जाती है. कहते हैं कि इस व्रत को करने से सारे कष्ट दूर हो जाते हैं. वैसे तो हर महीने चौथ का आती है, लेकिन माघ महीने के कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली चतुर्थी तिथि का खास महत्व माना गया है. ऐसी मान्यता है कि सकट चौथ के व्रत से संतान की सारी बाधाएं दूर होती हैं.


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सकट चौथ को संकष्टी चतुर्थी, वक्रकुंडी चतुर्थी, तिलकुटा चौथ के नाम से भी जाना जाता है. कहा जाता है कि इस दिन भगवान गणेश और चंद्रमा की पूजा करने से सारी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं. कई लोग इसे वक्रतुंडी चतुर्थी, माघी चौथ अथवा तिलकुटा चौथ भी कहते हैं. 


सकट चौथ व्रत के त्योहार पर महिलाएं अपने परिवार की सुख और समृद्धि के लिए निर्जल व्रत रखती हैं. सकट चौथ का व्रत खास तौर पर संतान की दीर्घायु और उज्जवल भविष्य की कामना के लिए रखा जाता है. ऐसा माना जाता है कि महाभारत काल में श्रीकृष्ण की सलाह पर पांडु पुत्र धर्मराज युधिष्ठिर ने सबसे पहले सकट चौथ व्रत को रखा था.


व्रत विधि
सकट चौथ के दिन महिलाएं प्रात:काल स्नान के पश्चात ऋद्धि-सिद्धि के दाता भगवान गणेश जी की पूजा करती हुई, पूरे दिन निर्जल व्रत रखती हैं. इसके बाद शाम को गणेश जी विधि-विधान से पूजन एवं फल-फूल, तिल, गुड़ आदि अर्पित किया जाता है. गणेश जी की पूजा में दूब चढ़ाना न भूलें. इसके साथ शमी, बेलपत्र और गुड़ में बने तिल के लड्डू चढ़ाने चाहिए. याद रहे इस व्रत में तिल का प्रसाद जरूरी होता है. 


क्या है व्रत कथा
कहते हैं कि सतयुग में राजा हरिश्चंद्र के राज्य में एक कुम्हार था. एक बार तमाम कोशिशों के बावजूद जब उसके बर्तन कच्चे रह जा रहे थे तो उसने यह बात एक पुजारी को बताई. उस पर पुजारी ने बताया कि किसी छोटे बच्चे की बलि से ही यह समस्या दूर हो जाएगी. इसके बाद उस कुम्हार ने एक बच्चे को पकड़कर आंवा में डाल दिया. वह सकट चौथ का दिन था. काफी खोजने के बाद भी जब उसकी मां को उसका बेटा नहीं मिला तो उसने गणेश जी के समक्ष सच्चे मन से प्रार्थना की. उधर जब कुम्हार ने सुबह उठकर देखा तो आंवा में उसके बर्तन तो पक गए, लेकिन बच्चा भी सुरक्षित था. इस घटना के बाद कुम्हार डर गया और राजा के समक्ष पहुंच पूरी कहानी बताई. इसके पश्चात राजा ने बच्चे और उसकी मां को बुलवाया तो मां ने संकटों को दूर करने वाले सकट चौथ की महिमा का वर्णन किया. तभी से महिलाएं अपनी संतान और परिवार के सौभाग्य और लंबी आयु के लिए व्रत को करने लगीं.