Car Engine Problem: दिल्ली-एनसीआर में पेट्रोल कारों का रजिस्ट्रेशन 15 साल और डीजल कारों का रजिस्ट्रेशन 10 साल के लिए वैलिड है. वहीं, कई राज्यों में डीजल कारों का रजिस्ट्रेशन भी 15 साल के लिए वैलिड है. अब इस दौरान बहुत से लोग कार को बेच देते हैं लेकिन कई लोग ऐसे भी होते हैं, जो कार को तब तक ही अपने पास रखते हैं और इस्तेमाल करते रहते हैं, जब उसका रजिस्ट्रेशन वैलिड होता है. लेकिन, नई कार खरीदने के शुरुआती 4 से 5 सालों के बाद उसका मेंटेनेंस बढ़ जाता है और फिर जैसे-जैसे कार ज्यादा पुरानी होती जाती है, मेंटेनेंस का खर्चा बढ़ता ही जाता है.


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एक समय के बाद कार के साथ मिलने वाली वारंटी भी खत्म हो जाती है. ऐसी स्थिति में अगर कार में कोई खराबी आती है तो उसे सही कराने का खर्चा या तो कार मालिक को उठाना पड़ेगा या फिर अगर इंश्योरेंस में वह कवर होगा, तो फिर इंश्योरेंस कंपनी उठाएगी. इसीलिए, कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि कार पुरानी हेने के बाद उसमें आने वाली खराबियों का खर्चा कार मालिक के सिर पर ही आता है. इसीलिए, बड़ी संख्या में लोग नई कार खरीदने के 5-6 साल बाद उसे बेचने की योजना बना लेते हैं. लेकिन, क्या सबको ऐसा करना चाहिए?


यहां सोचने वाली यह है कि कार में छोटी-मोटी परेशानियां तो आती ही रहते हैं, उनके खर्चे को लेकर ज्यादा चिंता करने की जरूरत नहीं होती है. लेकिन, कार का इंजन सबसे ज्यादा उसका कॉम्पलिकेटेड हिस्सा होता है और सबसे महंगा हिस्सा भी होता है. अगर किसी वजह से कार की इंजन में कोई परेशानी सामने आती है तो आपके लिए चिंता का विषय हो सकता है क्योंकि इसे ठीक कराने में बड़ा खर्चा आ सकता है. इसके अलावा, कई स्थितियां ऐसी हो सकती हैं, जिनमें आपके लिए कार सेल आउट कर देना ही बेहतर ऑप्शन हो सकता है.


अगर आपको लगता है कि आपकी कार का इंजन ज्यादा परेशान कर रहा है या फिर आपका मैकेनिक कहे कि कार का इंजन खराब होने की कगार पर है और कभी-भी जाम हो सकता है, तो इससे पहले कि ऐसा हो, आपको कार बेच देनी चाहिए क्योंकि अगर इंजन जाम हो गया तो फिर अपनी कार को कबाड़ ही समझिए.


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