दुख, नितांत निजी है. एक अवस्‍था है. जिसे हम स्‍टेट ऑफ माइंड भी कह सकते हैं. हम वही रहते हैं, लेकिन अचानक एक ऐसी सूचना आती है, जिसकी हमें प्रतीक्षा थी, तो हम रोमांचित हो जाते हैं. प्रसन्‍नता से भर जाते हैं. इसका ठीक उल्टा उन सूचनाओं से होता है, जिन्हें हम नहीं चाहते थे, जो हमारे अनुकूल नहीं होती हैं.
 
चीनी दार्शनिक लाओत्‍से कहते हैं, 'कोई मुझे दुखी करके देखे. कोई मुझे दुखी कर ही नहीं सकता, क्‍योंकि मैं सुख मांगता ही नहीं हूं.' दुख के बारे में इससे खूबसूरत विचार कम ही मिलते हैं. इसका अर्थ यह हुआ कि हम जब भी दुखी होते हैं, उसका केंद्र वस्‍तुत: हमसे ही जुड़ा होता है. जैसे ही हम अपने आपको सुख की परिभाषा के दायरे में रखते हैं, अगले ही पल हम दुख को निमंत्रण पत्र भेज देते हैं. आए दिन हमारे दुख से पीड़ित रहने का एक कारण यह भी है कि हम खुद के प्रति बेहद उदार, दूसरों के प्रति निर्मम होते हैं.


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हम हमेशा खुद को कांच से बने बर्तन सा रखते हैं. जरा सी ठोकर लगी तुरंत बिखर गए. हमारी संवेदनाएं आशीष नेहरा की तरह हैं, जो हर दूसरी बात पर चोटिल हो जाती हैं. नेहरा का करियर इस कदर चोट से प्रभावित रहा कि उनके करियर में कुछ सुनहरे पलों के अलावा चोट का समय सबसे अधिक है. हमें भावनात्‍मक स्‍तर पर फिटनेस का पैमाना कपिल देव वाला चाहिए न कि नेहरा जैसा. इस उदाहरण से हम जीवन में प्रसन्‍नता, आनंद और सफलता में खुद की मानसिक मजबूती का महत्‍व आसानी से समझ सकते हैं.


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मनुष्‍य का इतिहास इतना कोमल तो नहीं कि वह हर छोटी-छोटी बात पर दुखड़ा लिए बैठा रहे. असल में समस्‍या पिछले बीस बरसों में समाज की संरचना में आए बदलाव की है. शहरी समाज के अपने जड़ों से कटने की है. रिश्‍तों के निजी होते जाने, हर बात दूसरों से छुपाने की है. इससे हमने अपने दुख की दुनिया को बहुत बड़ा कर लिया है. यह हमारे एकाकी होते जाने का परिणाम है.


दुख से बाहर निकलने का मंत्र है, अपने जीवन के आंगन से दूसरे की जिंदगी के दरवाजे पर सजग नजर से देखना. इससे आपको पता चलेगा कि आप दूसरे के मुकाबले कहीं कम पीड़ा में हैं. जीवन में जो हमारे बस में नहीं है, उसके लिए दुखी होने से कुछ नहीं होगा, बल्कि आप जो कर सकते हैं, अगर वह नहीं कर पा रहे हैं, तो असल दुख का कारण केवल यही होना चाहिए. इसके लिए अपने प्रति कठोर और दूसरों के प्रति प्रेम, स्‍नेह का द़ष्टिकोण हमें जीवन में कभी दुखी नहीं होने देगा, बल्कि इससे तो दुखी होने का समय ही नहीं मिलेगा. 


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दुखी वही है, जिसके पास ऐसा करने का भरपूर समय है, इसलिए अपने दुख पर हमेशा इस चेकपोस्‍ट को लगाए रखिए. जल्‍दी ही आपके दुख का समय कम हो जाएगा.


(लेखक ज़ी न्यूज़ में डिजिटल एडिटर हैं)


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