बिहार के मुख्यमंत्री और जनता दल यूनाइटेड के नवनियुक्त राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतीश कुमार ने एक साथ संघ यानी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ मुक्त भारत और शराब मुक्त भारत (एल्कोहल फ्री इंडिया) का एक साथ आह्वान किया है। बात अगर 'संघ-मुक्त भारत' की करें तो नीतीश ने यह आह्वान अभी देश की जनता से नहीं, बल्कि तमाम गैर भाजपाई दलों के नेताओं से किया है। तो क्या माना जाए, नीतीश इस सियासी मंत्र से बिहार के बाद अब केंद्र की सत्ता पर आसीन होना चाहते हैं या फिर नीतीश संघ (आरएसएस) फोबिया में जीने लगे हैं?


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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कांग्रेस मुक्त भारत के जवाब में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने आरएसएस (संघ) मुक्त भारत का नारा दिया। एडवांटेज कॉन्क्लेव 'बिहार 3.0 उम्मीद की उड़ान' कार्यक्रम में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने खुलकर आरएसएस और भाजपा पर हमला बोला। वरिष्ठ पत्रकार शेखर गुप्ता के सवाल पर उन्होंने 'संघ मुक्त भारत' का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र की मजबूती और देश की एकता के लिए भाजपा के विरोध में सभी शक्तियों को साथ आना होगा। आज भावनाएं भड़काने की कोशिश हो रही है। जिनका देश की आजादी में योगदान नहीं, वे तिरंगा के मुद्दे को हवा दे रहे हैं। नागपुर में भगवा फहराया जाता है और देश में तिरंगे की लड़ाई लड़ी जा रही है। कश्मीर फिर से वर्ष 2010 जैसा होता जा रहा है। इसका जवाब कौन देगा? हमने एनडीए से सिद्धांतों के आधार पर नाता तोड़ा था।


नीतीश ने सभी दलों को एक छतरी के नीचे आने का आह्वान किया है। इतना ही नहीं, नीतीश ने एनडीए के घटक दलों को भी साधने की कोशिश की। नीतीश ने कहा कि मोदी सरकार में एनडीए के घटकों दलों की भूमिका सर्वविदित है। उन्होंने भाजपा के असंतुष्टों पर भी डोरे डाले और भाजपा विरोधी गठजोड़ में सभी दलों को एक साथ, एक मंच और एक छतरी के नीचे आने का आह्वान किया। नीतीश ने कहा कि गठबंधन का फलक कितना भी बड़ा क्यों न हो, हमारा मकसद लोकतंत्र की रक्षा होनी चाहिए। एक समय आया था, जब लोहिया ने कांग्रेस के खिलाफ सभी दलों को एक करने का संकल्प लिया था। अब भाजपा और आरएसएस के खिलाफ सभी दलों को एकजुट करने के लिए वैसा ही संकल्प जरूरी है।


निश्चित रूप से एडवांटेज कॉन्क्लेव में नीतीश कुमार ने बातें तो बहुत अच्छी-अच्छी कीं, लेकिन नीतीश को पहली बात तो ये समझनी होगी कि भारतीय राजनीति में आरएसएस और भाजपा का प्रभाव इतना विस्तार नहीं ले पाया कि 'संघ-मुक्त भारत' या 'भाजपा-मुक्त भारत' का नारा लगाना पड़े। दूसरी बात ये कि संघ-मुक्त या भाजपा-मुक्त भारत एक सियासी एजेंडा तो हो सकता है, लेकिन जब इस मुद्दे पर राजनीति के मैदान में उतरेंगे और जनता के दरवाजे पर दस्तक देंगे तो जनता किस रूप में इसे अपनाएगी, कहना मुश्किल है। राजनीति कहती है कि वोट बैंक के लिहाज से इस तरह की रणनीति या एजेंडा कतई लाभ नहीं देने वाला होता है। आप जुमलेबाजी कर राजनीतिक उलट-फेर कर सकते हैं, लेकिन काल्पनिक मुद्दे को वास्तविकता की धार देकर राजनीतिक उलटफेर नहीं कर सकते। 


कहने का तात्पर्य यह कि संघ-मुक्त भारत एक काल्पनिक नारा है। इसकी तुलना नरेंद्र मोदी द्वारा दिए गए 'कांग्रेस-मुक्त भारत' के नारे से नहीं की जा सकती है। दरअसल, कांग्रेस पार्टी ने इस देश में छह दशक से अधिक समय तक शासन किया है। इतना ही नहीं, कांग्रेस पार्टी तो आजादी के आंदोलन से उपजी पार्टी है जिसकी स्थापना 1885 में की गई थी और तब से कांग्रेस इस देश में चली आ रही है। इस लिहाज से समझें तो 130 साल पुरानी पार्टी के बारे में कोई भी देश को इससे मुक्त करने की बात करता है तो वह भी 'एक कपोल कल्पना' जैसी ही है। हालांकि इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि कांग्रेस ने बीते डेढ़ दशक में जबरदस्त तरीके से अपना जनाधार खोया है और अगले एक दशक में अपने बूते उसका सत्ता में आना मुमकिन नहीं दिख रहा, बावजूद इसके पूरे देश में अगर किसी एक पार्टी का सबसे बड़ा सांगठनिक ढांचा है तो वह कांग्रेस पार्टी ही है।


अब से तीन साल बाद अप्रैल 2019 में देश एक और लोकसभा चुनाव के मैदान में होगा। कांग्रेस का कमजोर जनाधार, मोदी सरकार से देश में ऊहापोह के हालात और अजीब सी बेचैनी के बीच एक मजबूत राजनीतिक विकल्प बनाने की बात अगर नीतीश कुमार कर रहे हैं तो यह भारतीय लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत है। लेकिन नीतीश कुमार को भी ये समझना होगा कि एक मजबूत राजनीतिक विकल्प संघ या भाजपा मुक्त भारत का नारा देकर संभव नहीं। यह मजबूत विकल्प बनेगा शराब-मुक्त भारत (एल्कोहल-फ्री इंडिया) का नारा देकर। इस नारे को देश की आधी आबादी (महिला जनसंख्या) के साथ-साथ उन सभी सामाजिक व राजनीतिक संगठनों का समर्थन मिलेगा जो वाकई भारतीय जनमानस में भरोसा रखते हैं। जिन्हें देश से प्यार है, भारत मां से प्यार है। नीतीश सरकार ने बिहार में पूरी तरह से शराबबंदी को लागू कर दिया है। 


नरेंद्र मोदी ने गुजरात में बहुत पहले शराबबंदी को लागू कर दिया था, लेकिन शराब-मुक्त भारत का नारा देकर नीतीश ने निश्चित रूप से नरेंद्र मोदी को राजनीतिक पटकनी दे दी है। 2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद पीएम मोदी के लिए यह बेहतरीन अवसर था कि वह 'एल्कोहल-फ्री इंडिया' की बात करते। लेकिन उन्होंने यह मौका गंवा दिया और नीतीश कुमार ने इस अवसर को लपक लिया। कोई संदेह नहीं कि नीतीश 'एल्कोहल-फ्री इंडिया' को 2019 में राष्ट्रीय मुद्दा बनाकर मैदान मार लें। लेकिन इसके लिए उन्हें संघ फोबिया और भाजपा फोबिया से बाहर आना होगा। आपको अपने मुद्दे को लेकर आगे बढ़ना होगा, देश से संवाद करना होगा। संघ और भाजपा के मुद्दों में अगर उलझेंगे तो आप अपने निश्चय को कमजोर करेंगे।