नई दिल्ली: भारत में टेक्निकल पढ़ाई या इंजीनियरिंग करने के बाद ज्यादातर लोग विदेश में नौकरी करने का प्लान बनाते हैं. इसके लिए वो कई मल्टीनेशनल कंपनियों में ट्राई करते हैं. लेकिन आज हम आपको एक ऐसे कपल की स्टोरी बताने जा रहे हैं, जिन्होंने विदेश की अच्छी खासी नौकरी छोड़कर देश में खुद का बिजनेस स्टार्ट करने का प्लान बनाया और भारत लौटकर सुपारी के पत्तों से टेबलवेयर प्रोडक्ट बनाने का शानदार बिजनेस शुरू किया.


पहले विदेश में की नौकरी


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हम बात कर रहे हैं केरल के मदुकई गांव के देवकुमार नारायणन और उनकी पत्नी सारन्या की. इन दोनों ने दिल्ली यूनिवर्सिटी से इंजीनयरिंग की इसके बाद आखों में सुनहरे भविष्य का सपना लिए, साल 2014 में संयुक्त अरब अमीरात (UAE) जाने का फैसला किया. वहां जाकर देव ने एक बड़ी टेलीकॉम कंपनी में नौकरी शुरू कर दी और सारन्या ने एक सिविल इंजीनियर के तौर पर  वाटरप्रूफिंग कंपनी ज्वाइन कर ली. धीरे-धीरे समय बीतता गया. वे काम तो यूएई में कर रहे थे, लेकिन उनका ध्यान हमेशा अपने गांव-घर पर लगा रहता था.


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भारत वापस आकर शुरू किया स्टार्टअप


देवकुमार बताते हैं कि उनका जुड़ाव हमेशा से अपने देश से रहा. इसके साथ ही वो 10 से 5 की नौकरी ज्यादा दिन तक नहीं करना चाहते थे. इसलिए उन्होंने भारत वापस आने का मन बनाया और यहां आकर स्टार्टअप खड़ा किया. उनका मानना है कि इससे वो अपने क्षेत्र के लोगों के युवाओं को रोजगार भी दे सकते हैं. इस बात को ध्यान में रखकर आखिरकार, साल 2018 में दोनों अपने गांव वापस लौट आए. यहां आकर देव और सारन्या ने ‘पपला’ नाम से एक कंपनी की शुरुआत की.



सुपारी के पत्तों से बनाते हैं प्रोडेक्ट


भारत आकर उन्होंने 5 लाख रुपये लगाकर अपना स्टार्टअप शुरू किया. इसके तहत वो सुपारी के पत्तों से टेबलवेयर, बैग्स से लेकर साबुन की पैकेजिंग वगैरह बनाते हैं. आज उनके उत्पादों की मांग भारत के अलावा, यूएई और अमेरिका जैसे देशों में भी है. फिलहाल उनकी कंपनी का टर्नओवर 18 करोड़ रुपये है और अपने काम को संभालने के लिए उन्होंने गांव की सात जरूरतमंद महिलाओं को रोजगार भी दिया है.


इस वजह से रखा कंपनी का खास नाम


सारन्या बताती हैं कि स्थानीय तौर पर सुपारी को पाला के नाम से जाना जाता है और उन्होंने अपने ब्रांड का नाम ‘पपला’ इसलिए रखा, ताकि लोगों को इससे एक जुड़ाव महसूस हो. उन्होंने बताया कि सुपारी के पत्तों से कटोरी, चम्मच, प्लेट, साबुन कवर और आईडी कार्ड जैसे 18 तरह के उत्पाद बना रहे हैं. इन प्रोडेक्ट्स को बनाने के लिए किसी तरह से पेड़ों को नुकसान नहीं पहुंचाया जाता. इसके लिए पेड़ों से गिरे हुए पत्तों का इस्तेमाल किया जाता है.


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कोरोना काल में आईं कई दिक्कतें


शुरुआती दिनों में देव और सारन्या अपने उत्पादों को किसी थर्ड पार्टी के जरिए, अमेरिका, यूरोप और यूएई में भेज रहे थे. लेकिन, साल 2020 में कोरोना महामारी शुरू होने के बाद, उनका बिजनेस बुरी तरह से प्रभावित हुआ. सारन्या कहती हैं, 'कोरोना महामारी के बाद, अपने हमने बिजनेस को बचाने के लिए स्थानीय बाजारों में पकड़ बनानी शुरू की. आज हमारे उत्पाद उत्तर केरल के सभी सुपरमार्केट्स में उपलब्ध हैं. अगर हम सिर्फ एक्सपोर्ट का सोचते रहते, तो शायद आज हम बाजार में ही न होते.'


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