नई दिल्ली : टाटा समूह के चेयरमैन पद से हटाये गये साइरस मिस्त्री ने टाटा पावर के शेयरधारकों से प्रवर्तकों द्वारा उन्हें बोर्ड से हटाये जाने के प्रस्ताव के खिलाफ समर्थन मांगा है। उन्होंने कहा कि कंपनी ने उनके कार्यकाल में अन्य प्रतिस्पर्धियों के मुकाबले बेहतर प्रदर्शन किया है।


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कंपनी ने साइरस मिस्त्री को निदेशक पद से हटाये जाने के प्रस्ताव पर विचार के लिये 26 दिसंबर 2016 को असाधारण बैठक बुलायी है। उन्होंने शेयरधारकों को लिखे पत्र में कहा, ‘टाटा पावर के लिये एकीकृत आधार पर..जो प्रयास किये गये, उससे पिछले तीन साल में कंपनी के लाभ (ईबीआईटीडीए) में सुधार हुआ। पिछले कुछ साल में देश में बिजली क्षेत्र की नई रेटिंग हुई है और इसीलिए उनके कामकाज को सेंसेक्स की तरह तुलना करना उपयुक्त नहीं होगा। हालांकि, कंपनी ने उनके कार्यकाल में किसी भी प्रतिस्पर्धी कंपनी की तुलना में अच्छा प्रदर्शन किया है।’ 


मिस्त्री 2006 में टाटा संस के निदेशक मंडल से जुड़े और दिसंबर 2012 में बोर्ड के चेयरमैन बने। वह फिलहाल टाटा पावर के चेयरमैन हैं। उन्होंने कहा कि 2012 में टाटा पावर के समक्ष कई चुनौतियां थी और मूंदड़ा अति वृहत बिजली परियोजना (सीजीपीएल) में स्थिति के कारण उसके बने रहने को लेकर खतरा था। साइरस मिस्त्री के पत्र के अनुसार कंपनी की उत्पादन क्षमता करीब दोगुनी करने के लिये सीजीपीएल स्थापित किया गया था। इसमें 2.6 अरब डालर का निवेश किया गया और इसमें इंडोनेशियाई कोयले के उपयोग की योजना थी।


इसमें कहा गया है कि टाटा पावर ने इस दौरान 1.2 अरब डालर कोयला संपत्तियों में निवेश किया ताकि कोयले की आपूर्ति सुनिश्चित हो सके। हालांकि इंडोनेशियाई सरकार द्वारा कायदे कानूनों में बदलाव से परियोजना की व्यवहार्यता प्रभावित हुई। टाटा पावर ने केंद्रीय विद्युत नियामक आयोग के समक्ष याचिका दायर की और मामला अदालत में लंबित है। इस सप्ताह की शुरूआत में बिजली नियामक सीईआरसी ने इंडोनेशिया द्वारा नियमन में बदलाव से टाटा पावर को कोयले की बढ़ी हुई लागत का भार ग्राहकों पर डालने की अनुमति दे दी। हालांकि यह राहत उच्चतम न्यायालय की मंजूरी पर निर्भर है जहां मामला अभी भी लंबित है।