ट्रंप ने भारत को दिया बड़ा झटका, ईरान से तेल खरीदने पर अब नहीं मिलेगी छूट
ईरान पर दबाव बढ़ाने और उसके शीर्ष कारोबारी उत्पाद की बिक्री पर लगाम कसने के इरादे से ट्रंप के इस फैसले का भारत की ऊर्जा सुरक्षा पर प्रभाव पड़ सकता है.
वॉशिंगटन: अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने सोमवार को ईरान से तेल खरीदने वाले किसी भी देश को प्रतिबंध में छूट नहीं देने का फैसला किया है. ईरान पर दबाव बढ़ाने और उसके शीर्ष कारोबारी उत्पाद की बिक्री पर लगाम कसने के इरादे से ट्रंप के इस फैसले का भारत की ऊर्जा सुरक्षा पर प्रभाव पड़ सकता है. व्हाइट हाउस की प्रेस सचिव सारा सैंडर्स ने कहा, ‘‘राष्ट्रपति डोनाल्ड जे. ट्रंप ने मई की शुरुआत में खत्म हो रही छूट से संबंधित ‘सिग्निफिकेंट रिडक्शन एक्सेप्शंस’ (एसआरई) को फिर से जारी नहीं करने का फैसला किया है.
इस कदम को राष्ट्रपति ट्रंप प्रशास के ईरान पर ‘‘अधिकतम दबाव’’ के तौर पर देखा जा रहा है
यह फैसला ईरान के तेल निर्यात को शून्य तक लाना है और वहां के शासन के राजस्व के प्रमुख स्रोत को खत्म करना है.’’ ईरान के साथ हुए 2015 में ऐतिहासिक परमाणु समझौते से हटते हुए अमेरिका ने पिछले साल नवंबर में ईरान पर पुन: प्रतिबंध लगाया था. अमेरिका के इस कदम को राष्ट्रपति ट्रंप प्रशास के ईरान पर ‘‘अधिकतम दबाव’’ के तौर पर देखा जा रहा है.
पिछले साल अमेरिका ने भारत, चीन, तुर्की और जापान समेत ईरान से तेल खरीदने वाले आठ देशों को 180 दिन की अस्थायी छूट दी थी. इस फैसले के तहत भारत समेत सभी देशों को दो मई तक ईरान से अपना तेल का आयात रोकना होगा. यूनान, इटली, जापान, दक्षिण कोरिया और ताइवान पहले ही ईरान से अपना तेल निर्यात काफी कम कर चुके हैं.
इराक और सऊदी अरब के अलावा ईरान भारत का तीसरा सबसे बड़ा तेल निर्यातक देश है.
इराक और सऊदी अरब के अलावा ईरान भारत का तीसरा सबसे बड़ा तेल निर्यातक देश है. एक बयान में सैंडर्स ने कहा कि ट्रंप प्रशासन और उसके सहयोगी अमेरिका, उसके सहयोगी देशों और पश्चिम एशिया की सुरक्षा के लिये खतरा पैदा करने वाली ईरान प्रशासन की अस्थिरकारी गतिविधियों को खत्म करने की खातिर ईरान के खिलाफ आर्थिक दबाव अभियान को टिकाऊ बनाने तथा इसे अधिक से अधिक बढ़ाने को लेकर दृढ़ संकल्प है.
वाशिंगटन पोस्ट की रिपोर्ट के अनुसार चीन और भारत फिलहाल ईरान से तेल आयात करने वाले सबसे बड़े देश हैं. अगर वे ट्रंप की मांगों का समर्थन नहीं करते हैं तो इससे दोनों देशों के द्विपक्षीय संबंध में तनाव आ सकता है और कारोबार जैसे अन्य मुद्दों पर इसका असर पड़ सकता है.