Flight Price: जब आपने पहली बार हवाई जहाज में यात्रा की होगी तो ज्यादातर लोगों को डर लगा होगा. प्लेन के जरा भी हिलने डुलने पर मन में ख्याल आया होगा कि दोबारा प्लेन में नहीं बैठेंगे. लेकिन फिर आपने ये कहकर चैन की सांस ली होगी कि प्लेन को दो पायलट उड़ा रहे हैं जो किसी भी इमरजेंसी स्थिति को संभाल लेंगे. अब आप कल्पना कीजिए कि जिस प्लेन में आप सफर कर रहे हैं, उस प्लेन को सिर्फ एक पायलट उड़ा रहा हो और अचानक से उसे नींद आ जाए, या फिर उसकी तबीयत खराब हो जाए तो आपका क्या हाल होगा.


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सिंगल पायलट फ्लाइट


ये बात जानकर 50 हजार फीट पर उड़ रहे विमान में सफर कर रहे लोगों के पैरों तले की जमीन भी खिसक सकती है. लेकिन दुनिया के कई देशों की एयरलाइंस को सिंगल पायलट फ्लाइट का आइडिया जंच गया है. खबर ये है कि अपने मुनाफे की भरपाई करने के लिए 40 से ज्यादा देशों की एयरलाइंस दो पायलट्स की जगह एक पायलट के जरिए Commercial Flights ऑपरेट करना चाहती हैं. यानी आने वाले समय में हो सकता है कि आप जिस फ्लाइट से सफर करेंगे उसे दो की जगह एक पायलट ही उड़ा रहा हो.


नियम तैयार करने के लिए कहा


जिसके लिए जर्मनी, इंग्लैंड और न्यूजीलैंड समेत 40 से ज्यादा देशों ने Aviation Standards तय करने वाली संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी International Civil Aviation Organization से इसकी मांग की है और सिंगल पायलट फ्लाइट के नियम तय करने के लिए कहा है. European Union Aviation Safety Agency यानी EASA ने कहा है कि वर्ष 2027 में सिंगल पायलट फ्लाइट ऑपरेशन की शुरुआत हो सकती है. एक ही पायलट से विमान उड़ाने के आइडिया को प्रमोट करने वाले देश इसको लेकर दलील भी दे रहे हैं. वो दलील इस प्रकार से है---


पहली दलील- शुरुआत में छोटी दूरी की फ्लाइट्स में सिंगल पायलट ऑपरेटिंग की शुरुआत की जाएगी.
दूसरी दलील- मौजूदा विमानों में पहले से ही सिंगल पायलट टेक्नोलॉजी मौजूद है.
तीसरी दलील- कनाडा और जर्मनी में कई डोमेस्टिक रूट्स पर सिंगल पायलट फ्लाइट्स ऑपरेट हो रही हैं.
चौथी दलील- अब विमानों में ऐसी एडवांस तकनीकें मौजूद हैं जो ऑटो पायलट मोड पर क्रैश की संभावना को बेहद कम कर देती हैं .


दो पायलटों की वैल्यू


लेकिन इन सभी दलीलों पर सिर्फ एक दलील ही भारी है कि मुसीबत बताकर नहीं आती. इमरजेंसी कभी भी हो सकती है. अगर कॉकपिट में एक ही पायलट होगा तो क्या वो इमरजेंसी सिचुएशन को वैसे संभाल पाएगा जैसे दो पायलट मिलकर संभाल सकते हैं. कॉकपिट में दो पायलटों की मौजूदगी की वैल्यू क्या होती है, इसका उदाहरण है वो हादसा जिसे पूरी दुनिया The Miracle on the Hudson के नाम से जानती है.


The Miracle on the Hudson


ये 15 जनवरी 2009 की बात है. जब US Airways के एक विमान की हडसन नदी में इमरजेंसी लैंडिंग हुई थी. उस विमान में 155 लोग सवार थे. पायलट और को-पायलट की सूझबूझ और तालमेल से सभी यात्रियों को बचा लिया गया था. दरअसल, जब विमान ऑटो पायलट पर था और दोनों पायलट कॉकपिट में रेस्ट कर रहे थे. तभी को-पायलट ने विमान की तरफ पक्षियों के एक झुंड को आते देखा. पक्षियों की वजह से दोनों इंजन फेल हो गए. जिसके बाद विमान की हडसन नदी में इमरजेंसी लैंडिंग करवाई गई. अगर इस विमान को एक ही पायलट चला रहा होता तो क्या हो सकता था? ये घटना दो पायलटों के होने का महत्व बताती है.


प्लेन क्रैश की घटना


अगर एक पायलट के भरोसे विमान उड़ाने के नियम बन गए तो इमरजेंसी की सिचुएशन में क्या हो सकता है. इसका भी एक उदाहरण आपको बताते हैं. 1 जून 2009 के दिन पेरिस से रियो डि जनेरो जा रही एयर फ्रांस फ्लाइट 447 अटलांटिक महासागर के ऊपर 35 हजार फीट की ऊंचाई पर उड़ रही थी. जिसके कैप्टन केबिन में रेस्ट कर रहे थे और दो को-पायलट कॉकपिट में मौजूद थे. जिन्होंने विमान के स्पीडो-मीटर में कुछ गड़बड़ी नोट की तो कैप्टन को इमरजेंसी अलार्म दिया. लेकिन कैप्टन को कॉकपिट में पहुंचते पहुंचते 90 सेकेंड की देरी हो गई  और फिर तीन मिनट बाद ही प्लेन अटलांटिक महासागर में क्रैश हो गया. विमान में सवार सभी 228 लोगों की मौत हो गई.


एक-एक सेकेंड कीमती


इमरजेंसी सिचुएशन में जब एक-एक सेकेंड कीमती होता है, तब दो पायलटों के होते हुए भी कई बार वक्त हाथ से निकल जाता है. तो सोचिये, इमरजेंसी सिचुएशन को एक अकेला पायलट संभाल पाने में कितना कामयाब हो सकता है. विमान में एक पायलट का नियम एविएशन कंपनियों की मजबूरी हो सकती है. लेकिन ये मजबूरी इतनी बड़ी तो नहीं हो सकती कि विमान में सवार यात्रियों की जिंदगी से समझौता किया जा सके.


मानवीय भूल


अमेरिका के National Transportation Safety Board की स्टडी के मुताबिक प्लेन क्रैश की 80 फीसदी घटनाएं ह्यूमन एरर यानी मानवीय भूल की वजह से होती हैं. जिसमें 53 फीसदी प्लेन क्रैश के लिए पायलट की गलतियां जिम्मेदार होती हैं, जबकि 21 फीसदी में मैकेनिकल फेल्योर और 11 फीसदी मौसम के हालात प्लेन क्रैश की वजह बनते हैं. लेकिन ये भी सच है कि पायलटों की डिमांड और सप्लाई में कमी की वजह से कमर्शियल फ्लाइट्स उड़ाने वाले पायलट्स पर काम का दबाव हावी रहता है और उनकी नींद तक पूरी नहीं हो पाती.


प्लेन में झपकी


BBC के एक सर्वे से ये पता चला कि 56 प्रतिशत पायलट उड़ान के दौरान नींद लेते हैं . इनमें से 29 प्रतिशत ने बताया कि उड़ान के दौरान ऐसे भी मौके आए जब उन्होंने दूसरे पायलट को भी सोया हुआ पाया. सेफ्टी मैटर्स फाउंडेशन के सर्वे में 542 भारतीय पायलट्स ने ये स्वीकार किया था कि वो उड़ान के समय अपने साथी पायलट्स के सदस्यों को अलर्ट किए बिना ही कॉकपिट में झपकी मार लेते हैं.


आराम करने की इजाजत


नियम कहता है कि किसी पायलट को काम का बोझ हल्का होने पर लगभग उड़ान के दौरान 45 मिनट तक आराम करने की इजाजत है. लेकिन एक बार में सिर्फ एक पायलट ही रेस्ट ले सकता है. जबकि दूसरे को जागना होता है और कॉकपिट में ही मौजूद रहना होता है. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि अब लंबी दूरी की फ्लाइटें होती हैं, जिनमें काफी लंबा समय विमान हवा में रहता है. इसलिए जरूरी हो जाता है कि पायलटों को जरूरी रेस्ट मिले. कुछ लंबी दूरी की उड़ानों में तो चार पायलट तक होते हैं ताकि पायलटों को आराम का पूरा टाइम मिले और उनकी तबीयत खराब ना हो.


ये है कारण


वहीं अलग-अलग एयरलाइंस कंपनियां और रेगुलेटर्स एक पायलट से प्लेन उड़ाने की मांग कर रहे हैं  और इसके पीछे दो तर्क दे रहे हैं. पहला- एयरलाइंस कंपनियों को हो रहा घाटा और दूसरी- पायलट्स की कमी. दूसरी वजह सबसे अहम है क्योंकि एयरलाइंस कंपनियां पूरी दुनिया में पायलट्स की कमी से जूझ रही हैं. अमेरिकी कंसल्टिंग फर्म Oliver Wymen की रिपोर्ट है कि जनवरी 2021 में 326593 पायलटों की डिमांड थी जबकि 318532 पायलट्स ही उपलब्ध थे, यानी 8061 पायलटों की कमी. ये कमी वर्ष 2023 में बढ़कर 18785 पायलट और वर्ष 2025 में बढ़कर 33,663 पायलटों की हो जाएगी. जबकि वर्ष 2027 में ये कमी और ज्यादा बढ़कर 45 हजार से ज्यादा और वर्ष 2029 में करीब 60 हजार पायलटों की हो जाएगी .


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