प्रोडक्ट से लेकर शरिया वाले शेयर तक, दुनिया में कैसे बढ़ रही है इस्लामिक इकॉनमी? देखिए World Exclusive Report
What is Halal Economy: हलाल प्रोडक्ट वो है जिसे मुसलमानों को खरीदने की इजाज़त है. जबकि हराम प्रोडक्ट वो हैं जो ना इस्लामिक देशों में बेचे जाते हैं ना ही वो खरीदते हैं. अगर इस्लामिक देशों में कोई प्रोडक्ट हलाल सर्टिफाइड ना हो तो बवाल मच जाता है.
Halal Economy: कांवड़ यात्रा और उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और मध्यप्रदेश में दुकानदारों को अनिवार्य रूप से नेमप्लेट लगाने का मुद्दा पिछले कुछ दिनों से लगातार चर्चा में है. मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया है. सर्वोच्च न्यायालय ने राज्य सरकार के इस आदेश पर अंतरिम रोक लगा दी है.
दरअसल, यह मुद्दा कांवड़ यात्रा और खास दुकानों पर झूठी पहचान से जुड़ा है. एक पक्ष दुकानों और उनके मालिकों की असली पहचान उजागर करना जायज मानता है तो दूसरे पक्ष का कहना है कि इससे देश में भेदभाव बढ़ेगा. लेकिन आज हम आपको हलाल सर्टिफाइड पोडक्ट के बारे में विस्तार से बताएंगे. जिससे पूरी दुनिया में एक अलग इस्लामिक इकॉनमी चलती है.
कैसे काम करता है हलाल इकॉनमी?
दुकान पर असली पहचान दिखाना अगर मुस्लिमों से भेदभाव है तो हलाल सर्टिफाइड प्रोडक्ट का का समर्थन क्यों? इसमें सामान की कैटेगरी को दो हिस्सों में बांटा जाता है. एक हलाल प्रोडक्ट और दूसरा हराम प्रोडक्ट. हलाल प्रोडक्ट वो है जिसे मुसलमानों को खरीदने की इजाज़त है. जबकि हराम प्रोडक्ट वो हैं जो ना इस्लामिक देशों में बेचे जाते हैं ना ही वो खरीदते हैं. अगर इस्लामिक देशों में कोई प्रोडक्ट हलाल सर्टिफाइड ना हो, तो बवाल मच जाता है.
लेकिन विडंबना देखिए कि भारत में दुकान पर मालिक का असली नाम लिखने भर से लोग सुप्रीम कोर्ट तक फाइलें लेकर पहुंच जाते हैं. और संविधान खतरे में है, भेदभाव हो रहा है जैसे तर्क देते हैं. जबकि भारत समेत पूरी दुनिया में हलाल प्रोडक्ट का मार्केट करीब 166 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच चुका है. जबकि ग्लोबल हलाल इकॉनमी वर्ष 2025 तक करीब 644 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच जाएगी.
ग्लोबल स्तर पर होने वाले इस धार्मिक भेदभाव को लेकर ना कोई चर्चा होती है, ना कोई विरोध करता है. हलाल इकॉनमी वाले असली धार्मिक भेदभाव का पूरा मार्केट अब केवल प्रोडक्ट तक सीमित नहीं रह गया है. हमने जब हलाल इकॉनमी पर खोजबीन की तो हमें पता चला कि हलाल का कट्टर खेला...शेयर मार्केट तक भी पहुंच चुका है. कुछ लोग निवेश में भी इस्लाम के नाम पर हलाल और हराम का ज्ञान सिखा रहे हैं. DNA की World Exclusive Report में हमें जो पता चला है वह चौंकाने वाले हैं.
हलाल स्टॉक्स के बारे में जानकारी देने के लिए एक अलग कंपनी
एक अमेरिकी कंपनी मुस्लिम निवेशकों को हलाल और हराम शेयर्स के बारे में संपूर्ण जानकारी देती है. इस कंपनी का नाम है 'मुसफ्फा'. मुसफ्फा का मतलब होता है शुद्ध या पवित्र. इस कंपनी का मुख्य काम मुस्लिम निवेशकों को हलाल स्टॉक्स और हराम स्टॉक्स के बारे में जानकारी देना है. धर्म के नाम पर ये अब तक का सबसे बड़ा फ्रॉड भी कहा जा सकता है. ये कंपनी पूरी दुनिया के स्टॉक मार्केट में डील करती है. और मुस्लिमों को हलाल कंपनियों और हराम कंपनियों के बारे में बताती है. इसको शेयर मार्केट में खास कंपनियों के लिए फील्डिंग सेट करना भी कह सकते हैं. क्योंकि अगर इस कंपनी ने किसी शेयर को हलाल कहा है, तो यकीनन मुस्लिम उसे खरीदते हैं. इससे शेयर भी फायदे में और कंपनी भी फायदे में.
मुसफ्फा ने भारतीय स्टॉक मार्केट में शामिल कंपनियों की भी हलाल और हराम श्रेणियां बनाई हैं. मुसफ्फा कंपनी की मोबाइल APP में भारतीय शेयर बाजार में लिस्टेड कंपनियों की डीटेल्स होती हैं. कंपनियों के आगे हलाल या नॉट हलाल लिखा हुआ रहता है. हालांकि, हम आपको भारतीय कंपनियों के नाम नहीं बताना चाहते हैं. क्योंकि इससे असली धार्मिक भेदभाव पैदा होता है. हम आपको ये सिर्फ इसलिए दिखा रहे हैं कि दुनिया में हलाल सर्टिफाइड मार्केट इतना बड़ा हो गया है कि अब शेयर मार्केट जैसी जगहों पर भी धार्मिक भेदभाव किया जा रहा है.
कंपनी का मोटो- इस्लाम के मानने वालों को जागरूक करना
मुसफ्फा कंपनी के वेबसाइट के मुताबिक, उनका मिशन इस्लाम के मानने वालों को निवेश के प्रति जागरूक करना है. लेकिन उनका विजन बहुत खतरनाक है. उनका विज़न है कि वो इस्लाम के मानने वालों को शरिया वाले शेयर दिलवाएंगे. ताकि वो निवेश करें तो उन्हें धन भी मिले और जन्नत यानी खुदा का घर भी मिले.
हमने इस तरह की कंपनियों पर शेयर मार्केट एक्सपर्ट्स से भी बात की. उनका कहना है कि भारत में कुछ लोग दुकानों पर मालिकों के असली नाम लिखने को हिंदू-मुस्लिम भेदभाव से जोड़कर बवाल कर रहे हैं. उधर पूरी दुनिया में इस्लामिक कट्टरता वाला हलाल बाजार, सब्जी मार्केट से लेकर स्टॉक मार्केट तक पहुंच गया है. पैकेट बंद सामान का भी धर्म बताने वाले अब स्टॉक में भी हलाल और हराम देख रहे हैं. यह अफसोस की बात है कि हलाल नाम का धार्मिक भेदभाव, इंटरनेशनल हो चुका है और हम यहां इस बात पर बहस कर रहे हैं कि दुकानों पर मालिकों के नाम लिखे होने चाहिए या नहीं.